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________________ २२२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १४. बादरेइंदियपजत्तयस्स संकिलेस विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ५४॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । एत्थ गुणगारसाहणं पुव्वं व वत्तव्वं । बीइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ५५॥ बादरेइंदियपजत्तयस्स डिदिबंधट्टाणेहिंतो बीइंदियअपजत्तयस्स पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तहिदिबंधट्ठाणाणि जेण असंखेजगुणाणि तेण संकिलेस-विसोहिहाणाणं पि असंखेजगुणत्तं ण विरुज्झदे । एत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । बीइंदियपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥५६॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो । कुदो ? विसोहि-संकिलेसाणं वसेण हेट्ठा उवरिं च अप्पिदहिदिबंधटाणेहिंतो संखेजगुणहिदिबंधट्ठाणाणमुवलंभादो। तीइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ५७॥ कथं पजत्तयस्स हिदिबंधहाणोहितो अपजत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणं असंखेज्जगुणत्तं ? उनसे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५४ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । यहां गुणकारकी सिद्धिका कथन पहिलेके ही समान कहना चाहिये। उनसे द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५५ ॥ बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंकी अपेक्षा द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके पत्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र स्थितिबन्धस्थान चूँकि असंख्यातगुणे हैं, अतएव संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंके भी असंख्यातगुणे होने में कोई विरोध नहीं है। यहां गुणकार पल्योपमंका असंख्यातवां भाग है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५६ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, विशुद्धि अथवा संक्लेशके वशसे नीचे व ऊपर विवक्षित स्थितिबन्धस्थानोंकी अपेक्षा संख्यातगुणे स्थितिबन्धस्थान पाये जाते हैं। त्रीन्द्रिय अपर्याप्सकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ५७ ॥ शंका-पर्याप्तक जीवके स्थितिबन्धस्थानोंकी अपेक्षा अपर्याप्तक जीके स्थितिबन्धस्थान असंख्यातगुणे कैसे हो सकते हैं ? १ अ-आ-काप्रतिषु · संखेज्जगुणतं', ताप्रतौ [अ] संखेज्जगुणत्तं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org'
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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