________________
४, २, ६, ४. ]
वयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे पदमीमांसा
पदविसेसे दुविहसमसंखदंसणा दो । सिया ओमा, कत्थ वि हाणीदो समुप्पण्णअणुक्कस्सपदुवलंभादो । सिया विसिट्ठा, कत्थ वि वड्डीदो अणुक्कस्मपदुप्पत्तीए । सिया णोम - गोविसिट्ठा, अणुक्क सजहणम्मि अणुक्कस्सपदविसेसे वा अप्पिदे वड्डि-हाणीणमभावादो | एवं णाणावरणाणुक्कसवेणा एक्कारसपदप्पिया | ११ || एवं तदियसुत्तपरूवणा कदा |
संपहि चउत्थसुत्तपरूवणा कीरदे । तं जहा - जहणणाणावरणीयवेयणा सिया अणुक्कस्सा, अणुक्कस्सजहण्णस्स ओघजहण्णेण एगत्तदंसणादो । सिया सादिया, अजहण्णादो जहण्णपदुप्पत्तीए । सिया अणादिया त्ति णत्थि, सुहुमसांपराइयचरिमसमयबंधम्मिं चरिमसमयखीणकसाय संतम्मिय दव्वट्ठियणए अवलंबिज्जमाणे वि अणादित्ताणुवभादो | सिया अद्भुवा । सिया कलिओजा, खीणकसायचरिमसमयडिदिग्गहणादो | सिया णोम- गोविसिड्डा । एवं जहण्णकालवेयणा पंचपयारा सरूवेण छप्पयारा वा १५ || एवं च उत्थसुत्तपरूवणा कदा |
[ ८१
संपहि पंचम सुत्तपरूवणा कीरदे । तं जहा -- अजहण्णा णाणावरणीयवेयणा सिया उक्कस्सा, अजहण्णुक्कस्तस्य ओघुक्कस्साद पुधत्ताणुवलंभादो । सिया अणुक्कस्सा, तद
सम संख्यायें देखी जाती हैं । कथंचित् वह ओम है, क्योंकि, कहींपर हानिसे उत्पन्न हुआ अनुत्कृष्ट पद पाया जाता है । कथंचित् वह विशिष्ट है, क्योंकि, कहीं पर वृद्धिसे अनुत्कृष्ट पद उत्पन्न होता है । कथंचित् वह नोम-नोविशिष्ट है, क्योंकि, अनुत्कृष्टभूत जघन्य पदकी अथवा अन्य अनुत्कृष्ट पदविशेषकी विवक्षा करनेपर वृद्धि और हानिका अभाव रहता है । इस प्रकार ज्ञानावरणकी अनुत्कृष्टवेदना ग्यारह (११) पद स्वरूप है । इस प्रकार तीसरे सूत्रकी प्ररूपणा की गई है ।
अब चतुर्थ सूत्रकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- जघन्य ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, अनुत्कृष्ट जघन्यकी ओघजघन्यसे एकता देखी जाती है । कथंचित् वह सादि है, क्योंकि, अजघन्यसे जघन्य पद उत्पन्न होता है । कथंचित् अनादि यह पद नहीं है, क्योंकि, सूक्ष्मसाम्परायिक के अन्तिम समय सम्बन्धी बन्ध और क्षीणकषायके अन्तिम समय सम्बन्धी सत्त्वमें द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन करनेपर भी अनादिपना नहीं पाया जाता । कथंचित् वह अध्रुव है । कथंचित् वह कलिओज है, क्योंकि, क्षीणकषायके अन्तिम समय सम्बन्धी स्थितिका ग्रहण किया गया है । कथंचित् वह नोम-नोविशिष्ट है। इस प्रकार जघन्य कालवेदना पांच ( ५ ) प्रकार भथवा अपने साथ छह प्रकार भी है । इस प्रकार चतुर्थ सूत्रकी प्ररूपणा की गई है ।
अब पांचवें सूत्रकी प्ररूपणा करते हैं । वह इस प्रकार है- अजघन्य ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उत्कृष्ट है, क्योंकि, अजघन्य उत्कृष्ट ओघ उत्कृष्ट से पृथक् नहीं पाया जाता है । कथंचित् वह अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, वह उसका
१ अ-काप्रत्योः ' चरिमसमय समयबंधम्मि ' इति पाठः ।
छ. ११-११.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org