Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ६, ८.
कालणिदेसो खेत्तादिपडिसेहफलो । कस्से त्ति किं देवस्स किं णेरइयस्स किं मणुस्सस्स किं तिरिक्खस्से त्ति पुच्छा ।
अण्णदरस्स पंचिंदियस्स सष्णिस्स मिच्छाइट्टिस्स सव्वाहि पज्जत्ती हि पज्जत्तयदस्स कम्मभूमियस्स अकम्मभूमि यस्स वा कम्मभूमिपडिभागस्स वा संखेज्जवासाउअस्स वा असंखेज्जवासाउअस्स वा देवस्स वा मणुस्सस्स वा तिरिक्खस्स वा रइयस्स वा इत्थवेदस्स वा पुरिमवेदस्स वा णउंसयवेदस्स वा जलचरस्स वा थलचरस्स वा खगचरस्स वा सागार-जागार-सुदोवजोगजुत्तस्स उक्कस्सियाए द्विदीए उक्कस्सट्टिदिसंकिलसे वट्टमाणस्स, अधवा ईसिमज्झिमपरिणामस्स तस्स णाणावरणीयवेयणा कालदो उक्कस्सा ॥८॥
अण्णदरस्से त्ति णिद्देसो ओगाह्णादीणं पडिसेहाभावपदुपायणफलो | पंचिंदियस्से ति णिसो विगलिंदियपडिसेफलो ? णाणावरणीयस्स उक्कस्सिय द्विदिं पंचिंदिया चेव बंधात, णो विगलिंदिया इदि जं वृत्तं होदि । ते च पंचिंदिया दुविहा सण्गिणो अस
प्रतिषेध करनेवाला है । ' किसके होती है' इससे वह क्या देवके होती है, क्या नारकी होती है, क्या मनुष्यके होती है, और क्या तिर्यचके होती है, इस प्रकार पृच्छा की गई है ।
अन्यतर पंचेन्द्रिय जीवके - जो संज्ञी है, मिथ्यादृष्टि है, सब पर्याप्तियों से पर्याप्त है; कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज अथवा कर्मभूमिप्रतिभागोत्पन्न है; संख्यातवर्षायुष्क अथवा असंख्यातवर्षायुष्क है; देव, मनुष्य, तिर्यंच अथवा नारकी है; स्त्रीवेद, पुरुषवेद अथवा नपुंसकवेदमें से किसी भी वेदसे संयुक्त है; जलचर, थलचर अथवा नभचर है; साकार उपयोगवाला है, जागृत है, श्रुतोपयोग से युक्त है, उत्कृष्ट स्थिति के बन्ध योग्य उत्कृष्ट स्थिति-संक्लेशमें वर्तमान है, अथवा कुछ मध्यम संक्लेश परिणामसे युक्त है, उसके ज्ञानावरणीय कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥ ८ ॥
सूत्र में अन्यतर पदका निर्देश अवगाहना आदिकों के प्रतिषेधके अभावको सूचित करता है । पंचेन्द्रिय पदका निर्देश विकलेन्द्रियका प्रतिषेध करता है । इससे यह फलित होता है कि ज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट स्थितिको पंचेन्द्रिय जीव ही बांधते हैं, विकलेन्द्रिय नहीं बांधते । वे पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकारके हैं - संज्ञी और असंक्षी
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