Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खडागमै धैयणाखंड १, ३, ६, १६.
(चूलिया) - एत्तो मूलपयडिट्ठिदिबंधे पुत्वं गमणिज्जे तत्थ इमाणि चत्तारि अणियोगदाराणि- ट्ठिदिबंधष्ठाणपरूवणा णिसेयपरूवणा आबाधाकंदयपरूवणा अप्पाबहुए त्ति ॥ ३६ ॥
पदमीमांसा सात्तिप्पाबहुए ति तीहि अणियोगद्दारेहि कालविहाणं परूविदं । तं च समत्तं, तिण्णेव अणियोगद्दाराणि कालविहाणे सुत्तस्सादीए होंति ति परविदत्तादो । अह ण समत्ते, कालविहाणे तिणि चेव अणियोगद्दाराणि होति त्ति भणिदसुत्तस्स अणत्थयत्तं पसज्जेज्ज । ण च सुत्तमणत्थयं होदि, विरोहादो । तदो कालविहाणं समतं चेव । एवं समते उवरिमसुत्तारंभो अणत्थओ त्ति १ एत्थ परिहारो उच्चदे- तीहि अणियोगद्दारेहि कालविहाणं परूविय समत्तं चेव । किंतु तस्स समत्तस्स वेयणाकालविहाणस्स उवरिगंथेण चूलिया उच्चदे । (चूलिया णाम किं ? कालविहाणेण सूचिदत्थाणं विवरणं चूलिया जाए अत्थपरूवणाए कदाए पुवपरूविदत्थम्भि सिस्साणं णिच्छओ उप्पज्जदि सा चूलियाँ ति भणिदं होदि ) तम्हा उवरिमगंथावयारो संबद्धो त्ति घेत्तव्यो।
आगे मूलप्रकृतिस्थितिबन्ध पूर्वमें ज्ञातव्य है । उसमें ये चार अनुयोगद्वार हैंस्थितिबन्धस्थानप्ररूपणा, निषेकप्ररूपणा, आबाधाकाण्डकप्ररूपणा और अल्पबहुत्व ॥ ३६॥
शंका-पदमीमांसा, स्वामित्व और अल्पबहुत्व, इन तीन अनुयोगद्वारों के द्वारा कालविधानकी प्ररूपणा की जा चुकी है, वह समाप्त भी हो चुकी; क्योंकि, कालविधान में सूत्रके प्रारम्भ में तीन ही अनुयोगद्वार होते हैं ' ऐसा कहा गया है । फिर भी यदि उसको समाप्त न माना जाय तो फिर “कालविधानमें तीन ही अनुयोगद्वार है" इस प्रकार वहां कहे गये सूत्रके अनर्थक होनेका प्रसंग आवेगा। किन्तु सूत्र अनर्थक होता नहीं है, क्योंकि, इसमें विरोध होता है। इस कारण कालविधानको समाप्त ही मानना चाहिये । इस प्रकार उसके समाप्त हो जाने पर आगे सूत्रका प्रारम्भ करना अनर्थक है ?
समाधान-इस शंकाका परिहार करते हैं। तीन अनुयोगद्वारोंके द्वारा उसकी प्ररूपणा हो चुकनेपर वह समाप्त ही हो गया है। किन्तु आगेके ग्रन्थसे समाप्ति. को प्राप्त हुए उक्त कालविधानकी चूलिका कही जाती है।
शंका- चूलिका किसे कहते हैं ?
समाधान-कालविधानके द्वारा सूचित अर्थोका विशेष वर्णन करना चूलिका कहलाती है। जिस अर्थप्ररूपणाके किये जानेपर पूर्वमें वर्णित पदार्थके विषयमें शिष्योंको निश्चय उत्पन्न हो उसे चूलिका कहते हैं, यह अभिप्राय है। अत एव अग्रिम प्रन्थका अवतार सम्बद्ध ही है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये।
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