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खंड खंड
[ ४, २, ६, ५०.
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एत्तो अट्टणं कम्माणं चोहसजीवसमासेसु परत्थाणप्पाबहुगं वत्तइस्लामो । तं जहासव्वत्योवो' चोदसणं जीवसमासाणं आउअस्स जहण्णओ हिदिबंधो । बारसहं जीवसमासाणं आउअस हिदिबंधाणविसेसो संखेजगुणो । द्विदिबंधद्वाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । असणिपंचिंदियपजत्तयस्स आउअस्स ट्ठिदिबंधट्ठाण - विसेसो असंखेज्जगुणो । कुदो ? असण्णिपंचिंदियपज्जत्तसु णिरय- देवाउआणमुक्कस्सेण पलिदो - वमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तट्ठिदिबंधुवलंभादो । हिदिबंधाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । सुहुमेईदियअपजत्तयस्स गामा-गोदाणं द्विदिबंधट्ठाण विसेसो असंखेजगुणो । द्विदिबंधद्वाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव चदुष्णं कम्माणं द्विदिबंध - ट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव मोहणीयस्स ट्ठिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेजगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । बादरएइंदियअपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं ट्ठिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । द्विदिबंधट्टाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव चदुण्णं कम्माणं द्विदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । ट्ठिदिबंध - द्वाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव मोहणीयस्य द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज गुणो । द्विदिबंधद्वाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्त णामा-गोदाणं द्विदिबंध -
अब यहांसे आगे चौदह जीवसमासोंमें आठ कर्मोंके परस्थान अल्पबहुत्वको कहते हैं । यथा - चौदह जीवसमासोंके आयु कर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । बारह जीवसमासोंके आयु कर्मका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । असंशी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके आयुका स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है, क्योंकि, असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्यातकों में नारकायु और देवायुका स्थितिबन्ध उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र पाया जाता है । उससे स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्र कर्मका स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसी जीवके चार कमौका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक के नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपले विशेष अधिक हैं । उसीके चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उसीके मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्र कर्मका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा
१ अ-काप्रत्योः सव्वत्थोवा ' इति पाठः ।
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