________________
४, २, ६, ५०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [१७७ ट्ठाणाणि एगस्वेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । चउरिंदियपज्जत्तयस्स आउअस्स आबाहट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । आबाहहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । बेइंदियपज्जत्तयस्स . आउअस्स आबाहट्ठाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । सण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं आबाहहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव पजतयस्स चदुण्णं कम्माणमाबाहट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ। आबाहाहाणाणि एगस्वेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । तस्सेव पजत्तयस्स मोहणीयस्त आबाहहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । बादरेइंदियपज्जत्ताणमाउअस्स आबाहट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ। आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । सण्णि-असण्णिपज्जत्ताणमाउअस्स आबाहट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया ।
___ संपहि एदेण सुत्तेण परूविददो वि अप्पाबहुअदंडयाणि जुगवं वत्तइरसामो । तं पि उभयदो अप्पाबहुअं दुविहं- अव्वोगाढअप्पाबहुअं मूलपयडिअप्पाबहुअं चेदि । तत्थ अव्वोगाढप्पाबहुअं दुविहं-- सत्थाणं परत्थाणं चेदि । तत्थ सत्थाणे पयदं- सव्वत्थोवो उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है । चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके आयुका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उत्कृष्ट आवाधा विशेष अधिक है । द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके आयुका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोका आबाधास्थानविशेष विशेष अधिक है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक है। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट आवाधा विशेष अधिक है । बदर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंके आयुका आबाधास्थानविशेष विशेष अधिक है। आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है । संशी व असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके आयुका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष आधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है।
अब इस सूत्रसे प्ररूपित दोनों ही अल्पबहुत्वदण्डकोंको एक साथ कहते हैं । वह दोनों प्रकारका अल्पबहुत्व अन्वोगाढअल्पबहुत्व और मूलप्रकृतिअल्पबहुत्वके भेदसे दो प्रकार है । उनमें अव्वोगाढअल्पबहुत्व दो प्रकार हैस्व-स्थान अल्पबहुत्व और परस्थाने अल्पबहुत्व । उनमें स्वस्थान अल्पबहुत्वका प्रकरण है-सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके छ. ११-२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org