________________
४, २, ६, ५०.] वेयणयहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा . [ १८३ सव्वत्थोवो सुहुमेइंदियअपजत्तयस्स गामा-गोदाणमाबाहट्ठाणविसेसो । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो। आबाहट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । आउअस्स जहणिया आबाहा असंखेनगुणा । जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो। आबाहाहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहाविसेसाहिया । णामा-गोदाणं जहणिया आबाहा संखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। चदुण्णं कम्माणं जहण्णिया आबाहा विसेसाहिया । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । मोहणीयस्स जहणिया आबाहा संखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। आउअस्स हिदिबंधवाणविसेसो संखेजगुणो । हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । णामा-गोदाणं हिदिबंधट्ठाणविसेसो असंखेजगुणो। हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणं हिदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो। हिदिबंधहाणाणि एगवाहियाणि । णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो असंखेजगुणो । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखज्जगुणो । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं सुहुमेइंदियपज्जत्तइनमेंसे स्वस्थान अल्पबहुत्वका प्रकरण है- सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका आबाधास्थानविशेष सबसे स्तोक है। आबाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं। चार कर्मोंका आबाधास्थानविशेष विशेष अधिक है । आवाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं । मोहनीयका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुगा है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक है। आयुकी जघन्य आबाधा असंख्यातगुणी है। जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है । आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। माम व गोत्रकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । उत्कृष्ट आबाधा. विशेष अधिक है। चार कौकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। उनकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है । मोहनीयकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। आयुका स्थितिवन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। चार कर्मोंका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं । मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं। नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगणा है। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चार कर्मों का जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार
१ ताप्रती एगरूक्णहियाणि ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org