________________
१८४ ] . छक्खंडागमे वेयणाखंडं
[४, २, ६, ५०. बादरेइंदियअपज्जत्ताणं च णेदव्वं ।
सव्वत्थोवो बादरेइंदियपजत्तयस्स णामा-गोदाणमाबाहट्टाणविसेसो । आबाहट्ठाणाणि एगवाहियाणि । चक्षुण्णं कम्माणमाबाहाहाणविसेसो विसेसाहिओ । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणविसेसो संखेज्जगुणो । आबाहाहाणाणि एगरूवाहियाणि । आउअस्स जहणिया आवाहा संखेजगुणा । जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । णामा-गोदाणं जहण्णिया आबाहा असंखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहियां । चदुण्णं कम्माणं जणिया आबाहा विसेसाहिया । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। मोहणीयरस जहणिया आबाहा संखेज्जगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया। आउअस्स आबाहाट्ठाणविसेसो संज्जगुणो । आबाहाहाणाणि एगवाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेजगुणो । हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। णामा-गोदाणं हिदिबंधट्ठाणविसेसो असंखेजगुणो। हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । चदुण्णं कम्माणं टिदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । हिदिबंधहाणाणि एगरूवाहियाणि । मोहणीयस्स हिदिबंधहाणविसेसो संखेजगुणो । द्विदिबंधट्ठाणाणि एगवाहियाणि । णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो असंखेजगुणो । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ।
सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकों और बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके भी जानना चाहिये ।
बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका आवाधास्थानविशेष सबसे स्तोक हैं। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। चार कर्मों का आवाधास्थानविशेष विशेष अधिक है। आबाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं । मोहनीयका आवाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आवाधास्थान एक रूपसे अधिक हैं। आयुकी जघन्य आवाधा संख्यातगुणी है । जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । नाम प गोत्रकी जघन्य आबाधा असंख्यातगुणी है। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। चार कर्मोकी जघन्य आबाधा विशेष अधिक है। उससे उन्हींकी उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है । मोहनीयकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है । उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। आयुका आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आबाधास्थान एक रुपसे अधिक हैं। उत्कट आबाधा विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। नाम व गोत्रका स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे . अधिक हैं । चार काँका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं । मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे अधिक हैं । नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चार कौका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उत्कृष्ट
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org