Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati

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Page 226
________________ ४, २, ६, ५०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [२०१ विसेसाहिओ । बादरेइंदिपअपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। सुहुमेइंदिपअपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियअपजत्तयस्स णामागोदाणमुक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ। सुहुमेइंदियपजत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बादरेइंदियपजत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। सुहुमेइंदियपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियअपज्जतयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। सुहमेइंदियपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बादरेइंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणमुक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । सेसाणि सत्त पदाणि विसेसाहियाणि णेदव्वाणि । बेइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम पा गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके चार कर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके चार कर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उ 'अपर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके चार काँका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक के चार काँका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। शेष सात पद विशेष अधिक क्रमसे ले जाना चाहिये । द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके १ अप्रती विसेसाहियाणि तिणेदव्वाणि ' इति पाठः। छ. ११-२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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