Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड . . [४, २, ६, ५०. हाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कसओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पजत्तयस्स मोहणीयस्स हिदिबंधहाणविसेसो संखेजगुणो। डिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव पज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। संपहि एदेण सुत्तेण सइदचउन्विहमप्पाबहुगं परूविदं ।
बध्यत इति बन्धः, स्थितिश्चासौ बन्धश्च स्थितिबन्धः, तस्स स्थान विशेषः स्थितिबन्धस्थानं आबाधस्थानमित्यर्थः । अथवा बन्धनं बन्धः, स्थितेर्बन्धः स्थितिबन्धः, सोऽस्मिन् तिष्ठतीति स्थितिबन्धस्थानम् तदो आबाधाहाणपवणाए वि हिदिबंधहाणपख्वणसण्णा होदि त्ति कटु आबाधाहाणपवणं परूवणा-पमाणप्पाबहुएहि कस्सामो । तं जहा–चोद्दसण्हं जीवसमासाणमत्थि आबाहाहाणाणि । आबाहाहाणं णाम किं ? जहण्णाबाहमुक्कस्साबाहादो सोहिय सुद्धसेसेम्मैि एगरूवे पक्खित्ते आबाहाहाणं । एसत्यो सव्वत्थ परूवेदव्यो । परूवणा गदा ।
चदुण्णमेइंदियजीवसमासाणमाबाधाहाणपमार्णमावलियाए असंखेज्जदिभागो । अट्टण्णं अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इस प्रकार इस सूत्रसे सूचित चार प्रकारके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा की है।
जो बांधा जाता है वह बन्ध कहलाता है। स्थितिश्चासौ बन्धश्च स्थितिबन्धः' इस कर्मधारय समासके अनुसार स्थितिको ही यहां बन्ध कहा गया है। उसके स्थान अर्थात् विशेषका नाम स्थितिबन्धस्थान है । अभिप्राय यह कि यहां स्थितिबन्धस्थानसे आबाधास्थानको लिया गया है। अथवा बन्धन क्रियाका नाम बन्ध है, 'स्थितिका बन्ध स्थितिबन्ध'इस प्रकार यहां तत्पुरुष समास है। वह स्थितिबन्ध जहां रहता है वह स्थितिबन्धस्थान कहा जाता है । इसीलिये आबाधास्थानप्ररूपणाकी भी स्थितिबन्धस्थानप्ररूपणा संशा है । अत एव प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व इन तीन अनुयोगद्वारोंके द्वारा आवाधास्थानप्ररूपणाको करते हैं । यथा-चौदह जीवसमासोंके आषाधास्थान.हैं ।
शंका-आबाधास्थान किसे कहते हैं ?
समाधान-उत्कृष्ट आबाधामेंसे जघन्य आवाधाको घटाकर जो शेष रहे उसमें एक अंकको मिला देनेपर आवाधास्थान होता है। .
इस अर्थकी प्ररूपणा सभी जगह करना चाहिये । प्ररूपणा समाप्त हुई।
चार एकेन्द्रिय जीवसमासोंके आबाधास्थानोंका प्रमाण आवलीके असंख्यातवें १ अ-आ-काप्रतिषु आवाधं' इति पाठः। २ तापतौ 'परूवणा (पमाण) मप्पाबहुए त्ति कस्सामो' इति पाठः। ३ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-काप्रतिषु 'सुद्धवैसम्मि', ताप्रती 'सुद्धवै (से) सम्मि' इति पाठः । ४ प्रतिषु 'समाण' इति पाठः।
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