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४, ५, ६, ३५.) वैयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्त
आउअवेयणा कालदो उक्कस्सिया असंखेज्जगुणा ॥ ३२॥
कुद। १ एगसमयं पेक्खिदूण पुव्वकोडितिभागाहियतेतीससागरावमेसु असंखेज्जगुणतुवलंभादो।
णामा-गोदवेयणाओ कालदो उक्कस्सियाओ दो वि तुल्लाओ असंखेज्जगुणाओ ॥ ३३॥
को गुणगारो ? संखेज्जा समया । कारणं पुवं व वत्तत्वं ।
णाणावरणीय---दसणावरणीय--वेयणीय ---अंतराइयवेयणाओ कालदो उक्कस्सियाओ चत्तारि वितुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥३४॥
कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । मोहणीयवेयणा कालदो उक्कस्सिया संखज्जगुणा ॥३५॥
को गुणगारो ? संखेज्जा समया । कारणं पुव्वं व वत्तव्वं । एवमप्पाबहुगाणियोगद्दार' संगतोक्खित्तगुणगाराहियारं समत्तं ।
उनसे आयु कर्मकी कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट वेदना असंख्यातगुणी है ॥ ३२॥
कारण कि एक समयकी अपेक्षा पूर्वकोटिके तृतीय भागसे अधिक तेतीस सागरोपम असंख्यातगुण पाये जाते हैं।
उससे कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट नाम व गोत्र कर्मकी वेदनायें दोनों ही तुल्य व असंख्यातगुणी हैं ॥ ३३॥
गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात समय है। इसका कारण पहिलेके ही समान बतलाना चाहिये।
उनसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मकी कालकी अपेक्षा उस्कृष्ट वेदनायें चारों ही तुल्य व विशेष अधिक हैं ३४॥
इसका कारण पहिलेके ही समान कहना चाहिये । इनसे मोहनीय कर्मकी कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट वेदना संख्यातगुणी है ॥ ३५ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात समय है। इसका कारण पहिले के ही समान बतलाना चाहिये।
इस प्रकार गुणकाराधिकारगर्भित अल्पबहुत्वानुयोगद्वार समाप्त हुआ।
१ अ-आ-काप्रतिषु ' योगदाराणि ' इति पाठः ।
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