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छपखंडागमे यणाखंड
[ ४, २, ६, २९.
रूवरस असंखेज्जदिभागन्भद्दियतेत्ती ससागरे वमपलिदोव मसलागाहि वीससागरोवमकोडा कोडि - पलिदोवमसलागासु खंडिदासु तत्थ एगभागो गुणगारो होदि ति उत्तं होदि ।
णाणावरणीय दंसणावरणीय --- वेयणीय. अंतराइयवेयणाओ कालदो उक्कस्सियाओ चत्तारि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥२९॥ कुदो ? वीससागरोवमको डाकोडीहिंतो तीससागरे वमको डाकोडीणं दुभागाहियत्तदंसणादो |
मोहणीयस्स वेयणा कालदो उक्कस्सिया संखेज्जगुणा ॥ ३० ॥ कुदो ? तीससागरोवमकोडाकोडीहिंतो सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीणं सत्तिभागदोरूवगारवलंभादो | एवं उक्कस्सवेयणा समत्ता ।
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जणु कस्सपदे अण्णं पि कम्माणं वेयणाओ कालदो जहण्णियाओ तुल्लाओ थोवाओ ॥ ३१ ॥ कुदो ? एगसमयत्तादो |
समय है । अभिप्राय यह कि एक रूपके असंख्यातवें भागसे अधिक तेतीस सागरोपमकी पल्यो पमशलाकाओं का बीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंकी पल्योपमशलाकाओं में भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध होता है वह यहां गुणकार है ।
उनसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मकी कालसे उत्कृष्ट वेदनायें चारों ही तुल्य व विशेष अधिक हैं ॥ २९ ॥
कारण कि बीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंसे तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपम द्वितीय भाग ( ३ ) से अधिक देखे जाते हैं ।
उनसे मोहनीय कर्मकी कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट वेदना संख्यातगुणी है ॥ ३० ॥
कारण कि तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंसे सत्तर कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंका एक तृतीय भाग सहित दो अंक गुणकार देखा जाता है। इस प्रकार उत्कृष्ट वेदना समाप्त हुई ।
जघन्य - उत्कृष्ट पदमें कालकी अपेक्षा आठों ही कर्मोंकी जघन्य वेदनायें परस्पर तुल्य व स्तोक हैं ॥ ३१ ॥
कारण कि उनका कालप्रमाण एक समय है ।
१ प्रतिषु ' अण्णेसिं' इति पाठः ।
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