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________________ ११८ ] छपखंडागमे यणाखंड [ ४, २, ६, २९. रूवरस असंखेज्जदिभागन्भद्दियतेत्ती ससागरे वमपलिदोव मसलागाहि वीससागरोवमकोडा कोडि - पलिदोवमसलागासु खंडिदासु तत्थ एगभागो गुणगारो होदि ति उत्तं होदि । णाणावरणीय दंसणावरणीय --- वेयणीय. अंतराइयवेयणाओ कालदो उक्कस्सियाओ चत्तारि वि तुल्लाओ विसेसाहियाओ ॥२९॥ कुदो ? वीससागरोवमको डाकोडीहिंतो तीससागरे वमको डाकोडीणं दुभागाहियत्तदंसणादो | मोहणीयस्स वेयणा कालदो उक्कस्सिया संखेज्जगुणा ॥ ३० ॥ कुदो ? तीससागरोवमकोडाकोडीहिंतो सत्तरिसागरोवमकोडाकोडीणं सत्तिभागदोरूवगारवलंभादो | एवं उक्कस्सवेयणा समत्ता । १ जणु कस्सपदे अण्णं पि कम्माणं वेयणाओ कालदो जहण्णियाओ तुल्लाओ थोवाओ ॥ ३१ ॥ कुदो ? एगसमयत्तादो | समय है । अभिप्राय यह कि एक रूपके असंख्यातवें भागसे अधिक तेतीस सागरोपमकी पल्यो पमशलाकाओं का बीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंकी पल्योपमशलाकाओं में भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध होता है वह यहां गुणकार है । उनसे ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय और अन्तराय कर्मकी कालसे उत्कृष्ट वेदनायें चारों ही तुल्य व विशेष अधिक हैं ॥ २९ ॥ कारण कि बीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंसे तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपम द्वितीय भाग ( ३ ) से अधिक देखे जाते हैं । उनसे मोहनीय कर्मकी कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट वेदना संख्यातगुणी है ॥ ३० ॥ कारण कि तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंसे सत्तर कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंका एक तृतीय भाग सहित दो अंक गुणकार देखा जाता है। इस प्रकार उत्कृष्ट वेदना समाप्त हुई । जघन्य - उत्कृष्ट पदमें कालकी अपेक्षा आठों ही कर्मोंकी जघन्य वेदनायें परस्पर तुल्य व स्तोक हैं ॥ ३१ ॥ कारण कि उनका कालप्रमाण एक समय है । १ प्रतिषु ' अण्णेसिं' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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