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________________ १, २ ६, २८.] यणमहाहियारे वैयणकालविहाणे सामित्तं [१३७ जहण्णपदेण अट्टण्णं पि कम्माणं वेयणाओ कालदो जहण्णियाओ तुल्लाओ ॥२६॥ कुदो ? एगाए द्विदीए एगसमयकालाए अट्टणं पि कम्माणं जहण्णकालवेयणाए गहणादो । परमाणुभेदेण कालभेदो एत्थ किण्ण गहिदो ? ण, कालं मोत्तूण एत्थ पदेसाणं विवक्खाभावादो । समयभावेण एगत्तमावण्णसमयविसेसम्मि परमाणुपवेसादो वा । जेणेदाओ अह वि कालवेयणाओ तुल्लाओ तेण जहण्णपदप्पाबहुअं णस्थि त्ति भावत्थो।। उक्कस्सपदेण सव्वत्थोवा आउअवेयणा कालदो उक्कस्सिया ॥२७॥ पुष्वकोडिविभ गाहियतेत्तीससागरोवमपमाणत्तादो । णामा-गोदेवयणाआ कालदो उक्कस्सियाओ दो वि तुल्लाओ संखेज्जगुणाओ॥ २८ ॥ कुदो १ वीससागरोवमकोडाकोडिपमाणत्तादो। गुणगारो संखेज्जा समया । एग जघन्य पदकी अपेक्षा आठों ही कर्मोकी कालसे जघन्य वेदनायें तुल्य हैं ॥ २६॥ कारण यह कि आठों ही कर्मोंकी एक एक समय कालवाली एक स्थितिको जघन्य कालवेदना ग्रहण किया गया है। शंका - परमाणुभेदसे यहां कालके भेदको क्यों नहीं ग्रहण किया गया है ? समाधान-नहीं, क्योंकि कालको छोड़कर यहां प्रदेशोंकी विवक्षा नहीं की गई है। अथवा, समय स्वरूपसे अभेदको प्राप्त हुए समयविशेषमें परमाणुओंका प्रवेश होनेसे कालभेदको ग्रहण नहीं किया गया। चंकि ये आठों ही कालवेदनाये परस्पर समान है, अतः जघन्य अल्पबहत्व नहीं है। यह भावार्थ है। उत्कृष्ट पदकी अपेक्षा कालसे उत्कृष्ट आयु कर्मकी वेदना सबसे स्तोक है ॥ २७॥ कारण यह कि वह पूर्वकोटिके तृतीय भागसे अधिक तेतीस सागरोपम प्रमाण है। उससे नाम व गोत्र कर्मकी कालसे उत्कृष्ट वेदनायें दोनों ही तुल्य व संख्यातगुणी हैं ॥ २८ ॥ __कारण यह कि वे बीस कोड़ाकोडि सागरोपम प्रमाण हैं । गुणकार यहां संख्यात छ. ११-१८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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