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छक्खंडागमे वेयणाखंड । [१, २, ५, २८. गच्छदि । पुणो एदम्हि संखेज्जावलियमेत्तआवाधाहाणेहि जहण्णाषाधादो संखेज्जगुणेहि गुणिदे संखेज्जसागरावममेत्तहिदिबंधट्ठाणुप्पत्तीदो। सण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणि णाणावरणादीणं सग-सगसमऊणधुवहिदीए परिहीणसग सगुत्तरसग - सगमेत्ताणि । एवं पमाणपरूवणा गदा ।
संपहि बंधट्ठाणाणं अप्पाबहुगं उच्चदे । तं जहा- सव्वत्थोवा सुहमेइंदियअपज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणि, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागपमाणत्तादो।
बादरे इंदियअपज्जत्तयस्स द्विदिबंधट्टाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥ ३८ ॥
कुदो १ सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स विदिबंधट्ठाणेहिंतो बादरेइंदियअपज्जएसु सुहुमेइंदियअपज्जत्तपढमचरिमद्विदिबंधट्ठाणादो हेट्ठा उवीरं च संखेज्जगुणवीचारहाणाणमुवलंभादो।
सुहुमेइंदियपज्जत्यस्स ट्ठिदिबंधडाणाणि संखेज्जगुणाणि ॥३९॥
. कुदो ? बादरेइंदियअपज्जत्तजहण्णुक्कस्सहिदीहितो हेट्ठा उवरिं च बादरेइदियअपज्जत्तहिदिबंधट्ठाणेहितो संखेज्जगुणद्विदिबंधट्ठाणाणं सुहमेइंदियपज्जत्तएसु उवलंभादो।
संख्यातगुणे संख्यात आवली मात्र आवाधास्थानोंसे गुणित करनेपर संख्यात सागरोपम प्रमाण स्थितिबन्धस्थान उत्पन्न होते हैं।
संक्षी पचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवके ज्ञानावरणादिकोंके स्थितिबन्धस्थान अपनी अपनी एक समय कम ध्रुवस्थितिसे रहित अपने अपने क्रमसे अपनी अपनी स्थिति प्रमाण होते हैं । इस प्रकार प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई।
__ अब बन्धस्थानोंका अल्पबहुत्व कहा जाता है। यथा-सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक जीवके स्थितिबन्धस्थान सबसे स्तोक हैं, क्योंकि, वे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं।
उनके बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबंधस्थ न संख्यातगुणे हैं ॥ ३८ ॥
इसका कारण यह है कि सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त कके स्थितिवन्धस्थानोंकी अपेक्षा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके प्रथम व चरम स्थितिबन्धस्थानसे नीचे व ऊपर संख्यातगणे वीचारस्थान पाये जाते हैं।
उनसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके स्थितिबंधस्थान संख्यातगुणे हैं ॥ ३९ ॥
इसका कारण यह कि बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य व उत्कृष्ट स्थितिसे नीचे व ऊपर बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकों में संख्यातगुणे स्थितिबन्धस्थान पाये जाते हैं।
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