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१२४ छक्खंडागमे वैयणाखंड
४, २, ६, १६. हाणं होदि । एवं णेदव्वं जाव बादरेइंदियधुवहिदि जहण्णपरित्तासंखेज्जेण खंडेदूण एगखंडमेत्तेण वड्डिदूणच्छिदहिदित्ति । पुणो एदस्सुवरि द्विदिघादेण समउत्तरं वडिदे वि असंखज्जभागवड्डी होदि ।
एदस्स्स छेदभागहारो। तं जहा- जहण्णपरित्तासंखेज विरलेदूण पादरेइंदियधुवहिदि समखंडं कादूण दिण्णे विरलणरूवं पडि जहण्णपरित्तासंखेज्जेण खंडिदेगखंडमागच्छदि । पुणो एदं समयाहियमिच्छामो त्ति एत्थ एगरूवधरिदं हेट्ठा विरलिय तं चेव समखंडं कादण दिण्णे एगरूवस्स वड्डिपमाणं पावदि । पुणो एदं उवरि दादूण समकरणं करिय रूवाहियहेट्टिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लब्भदि तो उरिमविरलणाए किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छमावट्टिय लद्धमेगरूवस्स असंखेजदिभागमुवरिमविरलणाए
Cअच्छेदनस्य राशेः रूपं छेदं वदन्ति गणितज्ञाः । ___ अंशाभावे नाशं छेदस्याहुस्तदन्वेव ॥५॥)
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प्रकार बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थितिको जघन्य परीतासंख्यातसे खण्डित करके एक खण्ड मात्रसे वृद्धिंगत होकर स्थितिके स्थित होने तक ले जाना चाहिये । पश्चात् इसके ऊपर स्थितिघातसे उत्तरोत्तर एक एक समय बढ़नेपर भी असंख्यातभागवृद्धि होती है।
इसके छेदभागहारको कहते हैं। यथा- जघन्य परीतीसंख्यातका विरलन करके ऊपर बादर एकेन्द्रियकी ध्वस्थितिको समखण्ड करके देने पर एक एक विरलन अंकके प्रति जघन्य परीतासंख्यातसे खण्डित करने पर एक खण्ड प्राप्त होता है। फिर चूंकि इसे एक समय अधिक चाहते हैं, अतः एक अंकके प्रति प्राप्त राशिका नीचे विरलन करके ऊपर उसको ही समखण्ड करके देने पर एक रूपका वृद्धिप्रमाण प्राप्त होता है। फिर इसको ऊपर देकर समकरण करके एक अधिक नीचेके विरलन प्रमाण स्थान जाकर उसको ही समखण्ड करके देनेपर एक रूपका वृद्धिप्रमाण प्राप्त होता है। इसको ऊपर देकर समकरण करके एक अधिक नीचेकी विरलन राशिके बराबर स्थान जाकर यदि एक रूपकी हानि प्राप्त होती है तो उपरिम विरलनके बराबर स्थान जाकर कितनी हानि प्राप्त होगी, इस प्रकार फल राशिसे गुणित इच्छा राशिमें प्रमाण राशिका भाग देनेपर जो एक रूपका असंख्यातवां भाग प्राप्त होता है उसको ऊपरकी विरलन राशिमैसे
जब राशिमें कोई छेद नहीं होता तब गणितज्ञ उसका छेद एक मान लेते हैं (जैसे ३३)। और जब अंशका अभाव हो जाता है तब छेदोका भी नाश समझना चाहिये (* -* =
*30) ॥५॥ ....................................
२ अ-काप्रत्योः ‘हिदहिदि ' इति पाठः । ।
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