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वेण महाहियारे वेयणकाल विहाणे सामित्तं
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४, २, ६, १६. ] बादरधुवदीए ओट्टिदाए संखेज्जभागवड्डिसमया लब्भंति । एवं छेद भागहार-समभागहारहि ट्ठिदिघादमस्सिदूण णदव्वं जाव धुर्वट्ठिदिभागहारो दारुवपमाणो पत्तो त्ति ।
पुणो अण्णो जीवो द्विदिघादं करेमाणो समउत्तराए द्विदीए आगदो । तमण्णं संखेज्जभागवड्ढिट्ठाणं |दि । पुणो एदस्स छेदभागहारो । तं जहा - उवरिमए गरूवधरिदं विरलेदूण- तं चैव समखंडं काढूण दिण्णे एक्केक्कस्स रूवस्स एगेग समयपमार्ण पावदि । पुणो एत्थ एगरूवधरिदं घेत्तूण उवरिमएगरूवधरिदम्मि दादूण समकरणे कीरमाणे रुवाहियहेट्ठिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण एगरूवपरिहाणी होदि त्ति रूवाहियहट्ठिमविरलणाए उवरिमविरलणाए ओट्टिदाए एगरूवस्स असंखेज्जदिभागो आगच्छदि । एदं सरिसछेदं कारण दारूवे सोहिदे एगरूवस्त असंखेज्जा भागा सगलमेगरूवं च भागहारो होदि । पुणो एदेण बादरधुवट्ठिदिमोवट्टिय लद्धमेत्ते वड्डाविदे अण्णमपुणरुतं संखज्जभागवड्डिाणं होदि । पुणो दुसमउत्तरं वडिदे वि संखेज्जभागवडिट्ठाणं होदि । एदस्स वि छेदभागहारो होदि । एदेण कमेण छेदभागद्दारो ताव गच्छदि जाव बादरघुवट्ठिदि दोहि रूवेहि खंडेदूण पुणो तत्थ एगखंड रूऊणं दोहि रूवेहि अवहिरिय
फिर इसका बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थिति में भाग देनेपर संख्यातभागवृद्धिके समय प्राप्त होते हैं। इस प्रकार छेदभागहार और समभागहारके द्वारा स्थितिघातका आश्रय करके ध्रुवस्थितिभागहारके दो अंक प्रमाण प्राप्त होने तक ले जाना चाहिये ।
पुनः दूसरा जीच स्थितिघातको करता हुआ उत्तरोत्तर एक-एक समय अधिक स्थिति के साथ आया । वह संख्यात भागवृद्धिका अन्य स्थान होता है। अब इसके छेदभागहारको कहते हैं। यथा- ऊपरके एक अंकके प्रति प्राप्त राशिका विरलन करके उसे ही समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक एक समय प्रमाण प्राप्त होता है । फिर इसमेंसे एक अंकके ऊपर रखी हुई राशिको ग्रहण कर उसे उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त राशिमें देकर समकरण करते हुए एक अधिक अधस्तन विरलन प्रमाण स्थान जाकर चूंकि एक रूपकी हानि होती है, अतः एक अधिक अधस्तन विरलनका उपरिम विरलनमें भाग देनेपर एक रूपका असंख्यातवां भाग प्राप्त होता है । इसको समानखण्ड करके दो रूपोंमेंसे घटा देनेपर एक रूपका असंख्यात बहुभाग और एक पूर्ण रूप भागहार होता है । फिर इससे बादर ध्रुवस्थितिको अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो उतना बढ़ानेपर संख्यातभागवृद्धिका अन्य अपुनरुक्त स्थान होता है । पुनः दो दो समय अधिक बढ़नेपर भी संख्यात भागवृद्धिका स्थान होता है। इसका भी छेदभागहार होता है। इस क्रमसे छेदभागहार तब तक जाता है जब तक बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थितिको दो रूपोंसे खण्डित करके उसमेंसे एक खण्डको एक कम करके पुनः दो रूपोंसे खण्डित करनेपर
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