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१२२) छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ६, १६. समयं तम्मि चेव धुवद्विदि पडिरासिय पक्खित्ते वट्टमाणवड्डिठाणुप्पत्तीदो' । दुसमउत्सरं वडिदण बंधमाणस्स वि असंखेज्जभागवड्डिट्ठाणं चेव । कुदो ? पुन्विल्लभागहारस्स दुमागेण धुवहिदीए ओवट्टिदाए दोण्णं समयाणमागमणदंसणादो । तिसमय उत्तरं वविद्ण पंधमाणस्स वि असंखेज्जभागवड्डी चेव, धुवहिदीए तिभागेण धुवहिदिमोवट्टिदे तिणं वहिदसमयाणमागमणदंसणादो। चदुसमयउत्तरं वड्ढिदूण बंधमाणस्स असंखेज्जदिभागबड़ी चेव, धुवहिदीए चदुभागेण धुवहिदीए ओवट्टिदाए वड्विदचदुरूवाणमागमणदसणादो। एवं बादरेइंदियधुवद्विदीए उवरि बादरेइंदियधुवहिदीए जत्तियाओ पलिदोवमसलागाओ अस्थि, तत्तियमेत्तेसु ममएसु वड्विदेसु वि असंखेज्जभागवड्डी चव होदि, पलिदोवमेण धुवहिदीए ओवट्टिदाए वड्डिदधुवद्विदिपलिदोवमसलागमेत्तसमयाणमागमणदंसणादो । पुणो एगसमयं वड्विदूण बंधमाणस्स वि असंग्वेज्जभागवड्डी चेव, किंचूणपलिदोवमेण धुवट्ठिदीए भागे हिदाए रूवाहियपलिदोवमसलागमेत्तसमयाणमागमणदंसणादो। धुवहिदिपलिदोवमसला. गासु दुगुणमेत्तासु वड्डिदासु वि असंखेज्जभागवड्डी चेव होदि, पलिदोवमदुभागेण धुवहिदीए ओवट्टिदाए दुगुणधुवद्विदिपलिदोवमसलागाणमागमणुवलंभादों । एवं पलिदोवमगुणसमय लब्ध होता है उसे ध्रुवस्थितिको प्रतिराशि करके मिला देनेपर वर्तमान वृद्धिका स्थान उत्पन्न होता हे।
उत्तरोत्तर दो-दो समय बढ़कर बांधनेवाले जीवके भी असंख्यातभागवृद्धिस्थान ही होता है, क्योंकि, पूर्व भागहारके द्वितीय भागका ध्रुवस्थितिमें भाग देनेपर दो समय आते देखे जाते हैं। उत्तरोत्तर तीन-तीन समय बढ़कर बांधनेवाले. के भी असंख्यातभागवृद्धि ही होती है, क्योंकि, ध्रुवस्थितिके तृतीय भागका धुवस्थितिमें भाग देनेपर वृद्धिंगत तीन समयोंकी प्राप्ति देखी जाती है। चार-चार समय उत्तरोत्तर बढ़कर बांधनेवालेके असंख्यातभागवृद्धि ही होती है, क्योंकि, ध्रवस्थितिके चतुर्थ भागका ध्रुवस्थितिमें भाग देनेपर वृद्धिप्राप्त चार रूपोंकी उपलब्धि देखी जाती है। इस प्रकार बादर एकेन्द्रियकी धुवस्थितिके ऊपर बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थितिमें जितनी पल्योपमशलाकायें हैं उतने मात्र समयोंकी वृद्धि हो चुकनेपर भी असंख्यातभागवृद्धि ही होती है, क्योंकि, पल्योपमका ध्रुवस्थितिमें भाग देनेपर ध्रुवस्थितिकी पल्योपमशलाकाओं प्रमाण वृद्धिंगत समयोंकी उपलब्धि देखी जाती है । तत्पश्चात् एक समयकी वृद्धि होकर बांधनेवालके भी असंख्यातभागवृद्धि ही होती है, क्योंकि, कुछ कम पल्योपमका धुवस्थितिमें भाग देनपर एक अधिक पल्यापमशलाकाओ प्रमाण समयोकी उपलब्धि देखा ध्रुवस्थितिमें जितनी पल्योपमशलाकायें हैं उनसे दूनी वृद्धिके होनेपर भी असं. ख्यातभागवृद्धि ही होती है, क्योंकि, पल्योपमके अर्ध भागका ध्रुवस्थितिमें भाग देनेपर दूनी ध्रुवस्थितिकी पल्योपमशलाकायें प्राप्त होती हैं। इस प्रकार पल्योपमकी
, तापतौ वड्डमाणवडिहाणुप्पत्तीदो' इति पाठः । २ अ-काप्रत्योः - मागमुवलंभादो' इति पाठः।
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