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४, २, ६, १२.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्तं
अण्णदरस्त मणुस्सस्स षा पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स वा सण्णिस्स सम्माइट्ठिस्स वा [मिच्छाइट्ठिस्स वा] सव्वाहि पज्जचीहि पज्जत्तयदस्स कम्मभूमियस्स वा कम्मभूमिपडिभागस्स या संखेज्जवासाउअस्स इथिवेदस्त वा पुरिसवेदस्स वा णउसयवेदस्स वा जलचरस्स वा थलचरस्स वा सागार-जागार-तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स वा [तप्पाओग्गविसुद्धस्स वा] उक्कस्सियाए आबाधाए जस्स तं देव-णिरयाउअं पढमसमए बंधंतस्स आउअवेयणा कालदो उक्कस्सा ॥ १२ ॥
ओगाहण-कुल-जादि-वण्ण-विण्णास-संठाणादिभेदेहि विसेसाभावपरूवणट्ठमण्णदरस्से त्ति भणिदं । देवाणमुक्कस्साउअस्स मणुसा चेव बंधया, णेरइयाणं उक्कस्साउअस्स मणुस्सा सण्णिपंचिंदियतिरिक्खा वा बंधया ति जाणावण8 मणुस्सस्स वा पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स वा सण्णिस्स्से त्ति भणिदं । देवाणं उक्कस्साउअं सम्मादिट्ठिणो चेव बंधंति, णेरइयाणं उक्कस्साउअं मिच्छाइट्ठिणो चेव बंधति त्ति जाणावणटुं सम्मादिहिस्स वा मिच्छादिहिस्स वा त्ति णिद्दिष्टुं । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदा चेव णेरइयाणं उक्कस्साउअं
जो कोई मनुष्य या पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञी है, सम्यग्दृष्टि [अथवा मिथ्यादृष्टि ] है, सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त है, कर्मभूमि या कर्मभूमिप्रतिभागमें उत्पन्न हुआ है, संख्यात वर्षकी आयुवाला है; स्त्रीवेद, पुरुषवेद् या नपुंसकवेदसे संयुक्त है; जलचर अथवा थलचर है, साकार उपयोगसे सहित है, जागरुक है, तत्प्रायोग्य संक्लेश [अथवा विशुद्धि] से संयुक्त है, तथा जो उत्कृष्ट आबाधाके साथ देव व नारकियोंकी उत्कृष्ट आयुको बांधनेवाला है, उसके बांधनके प्रथम समयमें आयु कर्मकी वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है ॥१२॥
अवगाहना, कुल, जाति, वर्ण, विन्यास और संस्थान आदिके भेदोंसे निर्मित विशेषताका अभाव बतलानेके लिये सूत्रमें 'अण्णदरस्त' यह कहा है। देवोंकी उत्कृष्ट आयुके बन्धक मनुष्य ही होते हैं तथा नारकियोंकी उत्कृष्ट आयुके बन्धक मनुष्य अथवा संशी पंचेन्द्रिय तिर्यंच होते हैं, यह जतलानेके लिये "मणुस्सस्स वा पंचिंदियतिरिक्खजोणियरस वा सणिस्त" ऐसा कहा है। देवोंकी उत्कृष्ट आयुको सम्यग्दृष्टि ही बांधते हैं तथा नारकियोंकी उत्कृष्ट आयुको मिथ्यादृष्टि ही बांधते हैं, यह प्रगट करने के लिये "सम्मादिटिस्स वा मिच्छादिहिस्स वा" ऐसा निर्देश किया गया है। जो छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो चुके हैं वे ही नारकियोंकी उत्कृष्ट आयुको बांधते
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. प्रतिविण्णाण ' इति पाठः । ..११-१५.
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