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१, २, ६, १३.] वैयणमहाहियारे वैयणकालविहाणे सामित्त ११.
पुणो उक्कस्साबाई काऊण उक्कस्साउअस्स अद्धे पबद्धे संखज्जगुणहाणी होदि। पुणो समऊणे अद्धे पत्रद्धे वि संखेज्जगुणहाणी चेव । एवं संखज्जगुणहाणी ताव गच्छदि जाव उक्कस्साउअं जहण्णपरित्तासंखेज्जेण खंडेदूण तत्थ एगखंडं रूवाहियं सेसं ति । एत्तो प्पहुडि असंखज्जगुणहाणी चेव होदूण गच्छदि । एवं ताव णेदव्वं जाव पुवकोडितिभागमाषाहं काऊण देवेसु दसवस्ससहस्साउअं बंधिदूण हिदो त्ति । पुणो एदेण आउएण समाणमणुस्साउअं घेतूण समऊण-दुसमऊणादिकमेण अधद्विदिगलणेण णेदव्वं जाव भवसिद्धियचरिमसमंओ त्ति । एवं कदे पुवकोडित्तिभागणभहियसमऊणतेतीससागरोवममेत्तट्ठाणवियप्पा सामित्तवियप्पा च लद्धा होति ।
___ संपहि एत्थ जीवसमुदाहारो छहि अणियोगदोरहि उच्चदे । तं जहा - उक्कस्सए ट्ठाणे जीवा अस्थि । तदणंतरहेट्ठिमट्ठाणे वि जीवा अस्थि । एवं णेदव्वं जाव अणुक्कस्सजहण्णट्ठाणे त्ति ।
___ आउअस्स उक्कस्सए द्वाणे जीवा असंखेज्जा, रइयउक्कस्साउअं बंधमाणजीवाणमसंखेज्जाणमुवलभादो । एवं सव्वत्थ णेदव्वं । णवरि एइंदियपाओग्गट्ठाणेसु एक्केकेसु जीवा अणंता । तत्तो हेडिमेसु खवगसेडीए चेव लब्भमाणेसु संखेज्जा ।
पुनः उत्कृष्ट आवाधाको करके उत्कृष्ट आयुके अर्ध भागको बांधनेपर संख्यातगुणहानि होती है। पश्चात् एक समय कम अर्ध भागके बांधने पर भी संख्यातगुणहानि ही होती है । इस प्रकार संख्यातगुणहानि तब तक जाती है जब तक कि उत्कृष्ट आयुको जघन्य परीतासंख्यातसे खण्डित करनेपर उसमें से एक अधिक एक खण्ड शेष रहता है । अब यहांसे असंख्यातगुणहानि ही होकर जाती है। इस प्रकार तब तक ले जाना चाहिये जब तक पूर्वकोटिके तृतीय भागको आबाधा करके देवोंमें दस हजार वर्ष पमाण आयुको बांधकर स्थित नहीं होता।
पश्चात् इस आयुके समान मनुष्यायुको ग्रहणकर एक समय कम दो समय कम इत्यादि क्रमसे अधःस्थितिके गलनेसे भवसिद्धिकके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये । ऐसा करनेपर पूर्वकोटिके तृतीय भागसे अधिक व एक समय कम तेतील सागरोपम प्रमाण स्थानविकल्प और स्वामित्वविकल्प प्राप्त होते हैं।
अब यहां छह अनुयोगद्वारोंके द्वारा जीवसमुदाहारको कहते हैं। यथाउत्कृष्ट स्थानमें जीव हैं । उससे अनन्तर नीचे के स्थानमें भी जीव हैं। इस प्रकार अनुत्कृष्ट- जघन्य स्थान तक ले जाना चाहिये।
आयुके उत्कृष्ट स्थानमें असंख्यात जीव हैं, क्योंकि, नारकियोंकी उत्कर आयुको बांधनेवाले असंख्यात जीव पाये जाते हैं। इसी प्रकार सब स्थानों में जानना चाहिये। विशेषता इतनी है कि एकेन्द्रियके योग्य स्थानों में से एक एक स्थानमें भनन्त जीव है। उससे नीचके क्षपकोणिमें ही पाये जानेवाले स्थानों में खंच्यात जीव।
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