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१, २, ६, ९.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्तं
[११६ तरेण कालेण अवहिरिज्जति । एवं जवमज्झादो उवीरं पि जाणिदूण वत्तन्वं । एवमवहारपरूवणा गदा।
जहण्णए हाणे जीवा सव्वट्ठाणजीवाणं केवडिओ भागो ? असंखेज्जदिभागो । एवं सव्वट्ठाणजीवाणं जाणिदूण भागाभागपरूवणा कायव्वा ।
सव्वत्थोवा जवमज्झाणं उक्कस्सए ढाणे जीवा । जहण्णए ढाणे जीवा असंखेज्जगुणा । गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। जवमज्झजीवा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? जवमज्झादो हेट्ठिमअण्णाण्णभत्थरासी। जबमज्झादो हेहिमजहण्णट्ठाणजीवेहितो उवरिमसव्वजीवा असंखेज्जगुणा। को गुणगारो ? किंचूणदिवड्ड [गुणहाणीओ] गुणगारो । जवमज्झादो हेट्ठिमजीवा विसेसाहिया । जवमज्झादो उवरिमजीवा विसेसाहिया । सव्वजीवा विसेसाहिया । एवमप्पाबहुगपरूवणा गदा।।
___ एवमेइंदिय-विगलिंदियाणं पि परूवेदव्वं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तएइंदियवीचारहाणेसु तस्सेत्र संखेज्जदिमागमेत्तविगलिंदियवीचारहाणेसु च । णवरि सादासादाणं बिट्ठाणजवमझं चेव, तत्थ तिट्ठाण-च उट्ठाणाणुभागाणं बंधाभावादो। किंतु सण्णिचिंदियगुणहाणिसला गाहिंतो तत्थतणगुणहाणिसलागाओ असंखेज्जगुणहीणाओ संखेज्जगुणहीणाओ
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तीन गुणहानिस्थानान्तरकालसे वे अपहृत होते हैं। इसी प्रकार यवमध्यके आगे भी जानकर कहना चाहिये। इस प्रकार अवहारप्ररूपणा समाप्त हुई।
जघन्य स्थानमें स्थित जीव सब जीवोंके कितने भाग प्रमाण हैं। वे उनके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। इस प्रकार सब स्थानोंके जीवोंको जानकर भागा, भागकी प्ररूपणा करना चाहिये।
. यवमध्योंके उत्कृष्ट स्थानमें जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य स्थानमें जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार पल्योपमका असंख्याता भाग है। उनसे यवमध्यके जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? यवमध्यसे नाचेकी अन्योन्याभ्यस्त राशिं गुणकार है । यवमध्यसे नीचे के जघन्य स्थान सम्बन्धी जीवोंकी अपेक्षा ऊपरके सब जीव असंख्यातगुणे हैं। गुणकार क्या है ? गुणकार कुछ कम डेढ़ गुणहानियां हैं। यवमध्यसे नीचेके जीव उनसे विशेष अधिक हैं। उनसे यवमध्यके उपरिम जीव विशेष अधिक हैं। उनसे सब जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार अल्पबहुत्वप्ररूपणा सम
इसी प्रकार पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र एकेन्द्रियके वीचारस्थानों में और उसके ही संख्यातवें भाग प्रमाण विकलेन्द्रियके वीचारस्थानों में एकेन्द्रिय एवं विकलेन्द्रिय जीवोंकी भी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि साता व असाता वेदनीयके द्विस्थानसम्बन्धी यवमध्य ही है, क्योंकि, वहां त्रिस्थान और चतु:स्थान अनुभागोंका बन्ध नहीं होता। किन्तु संक्षी पंचेन्द्रियकी गुणहानिशलाकाओंसे वहांकी गुणहानिशलाकायें असंख्यातगुणी हीन
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