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४, ५, ६, ९.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्त असंखेज्जदिमागमेत्ता। विदियाए वि हिदीए पदरस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता। एवं णेदव्वं जाव उक्कस्सहिदि त्ति ।
सेडिपरूवणा दुविहा- अणतरोवणिधा परंपरोवणिधा चेदि । तत्थ अणंतरोवणिधाए सादस्स चउट्ठाणबंधा तिट्ठाणबंधा जीवा असादस्म बिट्ठाणबंधा तिट्ठाणबंधा च जीवा णाणावरणीयस्स सग-सगजहणियाए हिदीए थोवा। विदियाए हिदीए विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण १ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंडमेतेण । तदियाए द्विदीए जीवा विसेसाहिया । एवं विसेसाहिया विसेसाहिया जाव जवमझं । तेण परं विसेसहीणा। एवं विसेसहीणा विसेसहीणा जाव सागरोवमसदपुधतं । सादस्स बिट्ठाणबंधा जीवा असादस्स चउट्ठाणबंधा जीवा णाणावरणीयस्म जहणियाए हिदीए थोवा । बिदियाए हिदीए जीवा विसेसाहिया । तदियाए हिदीए जीवा विसेसाहिया । एवं विसेसाहिया विसेसाहिया जाव सागरोवमसदपुधत्तं । तेण परं विसेसहीणा । एवं विसेसहीणा. विसेसहीणा जाव सादस्स असादस्स [य] उक्कस्सिया हिदि ति । एवमणंतरावणिधा समत्ता ।
परंपरोवणिधाए सादस्स चउट्ठाणबंधा तिट्ठाणबंधा जीवा असादस्स विट्ठाणबंधा
द्वितीय स्थितिमें भी वे प्रतरके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति तक ले जाना चाहिये ।
___श्रेणिप्ररूपणा दो प्रकार है- अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा । उनमें भनन्तरोपनियाकी अपेक्षा सातावेदनीयके चतुःस्थानबन्धक व त्रिस्थानबन्धक जीव तथा असातावेदनीयके द्विस्थानबन्धक व त्रिस्थानबन्धक जीव ज्ञानावरणीयकी अपनी अपनी जघन्य स्थितिमें स्तोक हैं । द्वितीय स्थितिमें उनसे विशेष अधिक हैं। कितने प्रमाणसे अधिक हैं ? पल्योपमके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर उसमेंसे वे एक खण्डसे अधिक हैं। उनसे तृतीय स्थितिमें जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार वे यवमध्य तक विशेष अधिक विशेष अधिक होते गये हैं। उसके आगे वे विशेष हीन हैं। इस प्रकार सागरोपमशतपृथक्त्व तक वे विशेष हीन विशेष हीन हैं । सातावेदनीयके द्विस्थानबन्धक और असातावेदनीयके चतुःस्थानबन्धक जीव झानावरणीयकी जघन्य स्थितिमें स्तोक हैं। द्वितीय स्थितिमें उनसे विशेष अधिक जीव हैं। तुतीय स्थितिमें उनसे विशेष अधिक जीव हैं। इस प्रकार सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण स्थिति तक वे उत्तरोत्तर विशेष अधिक विशेष अधिक हैं। इससे आगेकी
वे उत्तरोतर विशेष हीन हैं। इस प्रकार साता व असाता वेदनीयकी उत्कृष्ट स्थिति तक वे विशेष हीन विशेष हीन हैं। इस प्रकार अनन्तरोपनिया समाप्त हुई।
परम्परोपनिधाकी अपेक्षा सातावेदनीयके चतुःस्थानबन्धक व त्रिस्थानबन्धक तथा असाताघेदनीयके द्विस्थानबन्धक व त्रिस्थानबन्धक जीव भानावरणीयकी
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