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१, २, ६, ९.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्तं
[९१ चेव बंधदि ति जाणावणटुं जागारग्गहणं कदं । सुदोवजोगजुत्तो चेव उक्करसहिदि बंधदि, ण मदिउवजोगजुत्तो त्ति जाणावण8 सुदोवजोगजुत्तस्से त्ति भणिदं ।
उक्कस्सियाए ट्ठिदीए बंधपाओग्गसंकिलेसट्टाणाणि असंखज्जलोगमेत्ताणि अस्थि । तत्थ चरिमसंकिलेसट्टाणेण उक्कस्सद्विदिं बंधदि त्ति जाणावण8 उक्कस्सहिदीए उक्कस्सद्विदिसंकिलेसे' वट्टमाणस्से त्ति भणिदं । उक्कस्सटिदिबंधपाओग्गसेससंकिलसहाणेहि उक्कस्सद्विदिबंधस्स पडिसेहे पत्ते तेहि वि बंधदि त्ति जाणावणटुं ईसिमज्झिमपरिणामस्से त्ति उत्तं । अधवा, उक्कस्सटिदिबंधपाओग्गअसंखेज्जलोगमेत्तसंकिलेसट्ठाणाणि पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागमेत्तखंडाणि कादूण तत्थ चरिमखंडस्स उक्करसहिदिसंकिलेसो णाम । तत्थ वट्टमाणस्स उक्कस्सटिदिबंधो होदि । सेसदुचरिमादिखंडेहि उक्कस्सटिदिबंधपडिसेहे पत्ते तेहि वि उक्कस्सद्विदिबंधो होदि त्ति जाणावणट्ठमीसिमज्झिमपरिणामस्से त्ति उत्तं । एवंविहेण जीवेण णाणावरणीयस्स तीसंसागरोवमकोडाकोडिद्विदिबंधे पबद्धे तस्स णाणावरणीयवेयणा कालदो उक्कस्सा ।
तवदिरित्तमणुक्कस्सा ॥९॥
उसे बांधता है; इस बातके ज्ञापनार्थ ' जागृत ' पदका ग्रहण किया है। श्रुतोपयोग युक्त जीव ही उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है, न कि मतिउपयोग युक्त जीव; इस बातके ज्ञापनार्थ 'श्रुतोपयोग युक्त जीवके ' ऐसा कहा है।
उत्कृष्ट स्थिति के बन्ध योग्य संक्लेशस्थान असंख्यात लोक प्रमाण हैं। उनमेंसे अन्तिम संक्लेशस्थानके द्वारा उत्कृष्ट स्थितिको बांधता है, इस बातके शापनार्थ ' उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध योग्य उत्कृष्ट स्थितिसंक्लशमें वर्तमान' ऐसा कहा है । अब इससे उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध योग्य शेष संक्लेशस्थानोंके द्वारा उत्कृष्ट स्थितिके बन्धका निषेध प्राप्त होने पर उनसे भी उक्त स्थितिको बांधता है, इस बातको जतलानेके लिये 'कुछ मध्यम परिणामोंसे युक्त जीवके' ऐसा कहा गया है । अथवा, उत्कृष्ट स्थितिके बन्ध योग्य असंख्यात लोक प्रमाण संक्लेशस्थानोंके पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र खण्ड करके उनमें अन्तिम खण्डका नाम उत्कृष्ट स्थितिसंक्लेश है । इस अन्तिम खण्डमें रहनेवाले जीवके उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होता है। अब इससे शेष द्विचरम भादिक खण्डोंके द्वारा उत्कृष्ट स्थितिके बन्धका प्रतिषेध प्राप्त होने पर उनसे भी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध होता है, इस बातके शापनार्थ 'कुछ मध्यम परिणामोंसे युक्त जीवके' ऐसा कहा है । उपर्युक्त विशेषणोंसे विशिष्ट जीवके द्वारा ज्ञानावरणीयके तीस कोड़ाकोहि सागरोपम प्रमाण स्थितिबन्धके बांधनेपर उसके ज्ञानावरणीय की वेदना कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट होती है।
उससे भिन्न अनुत्कृष्ट वेदना होती है ॥९॥ १ प्रातिषु ' उनकस्सए डिदिसंकिलेसे ' इति पाठः।
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