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१, २, ६, ४.j वेयणमहाहियारे वैयणकालविहाणे पदमीमांसा
[८३ वेयणासामण्णस्स विणासाभावादो । सिया अदुवा, पदविसेसस्स विणासदंसणादो । अणादियत्तम्मि सामण्णविवक्खाए समुप्पणमम्मि कथं पदविसेससंभवो ? , संगतोखित्तअसेसविसेसम्मि सामण्णम्मि अप्पिदे तदविरोहादो । सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्ठा, सिया णोमणोविसिट्ठा । एवमणादिय पदरस बारस भंगा | १२। एसो सत्तमसुत्तत्थो।
धुवणाणावरणीवत्रणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्करसा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया, सिया अगादिया, सिया अधुवा, सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्टा, सिय। गोम-णोविसिट्ठा । एवं धुवपदस्स बारस भंगा | १२ । एसा अट्ठमसुत्तत्था।
अधुवणाणावरणीयवयणा सिया उपकस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया, सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्ठा, सिया णोम- णोविसिट्ठा । एवमधुवपदरस दस मंगा! ५०|| एसो णवमसुत्तत्था ।
ओजणाणावरणीयवयणा उक्कस्सा ण होदि, उक्कस्सहिदीए कदजुम्मे अवठ्ठाणादो। सिया अणुक्करसा, सिया जहणा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया। सिया अणादिया, सामण्णविवक्खादो । सिया धुवा, सिया अक्षुता, विसेसविवक्खाए । सिया ओमा, सिया
कथंचित् वह ध्रुव है, क्योंकि, वेदनासामान्यका कभी विनाश नहीं होता। कथंचित् वह अध्रुव है, क्योंकि, पदविशेषका विनाश देखा जाता है।
शंका- सामान्य विवक्षासे अनादिताके स्वीकार करने पर उसमें पदविशेषकी सम्भवना कैसे हो सकती है ? .
समाधान-- नहीं, क्योंकि, अपने भीतर समस्त विशेषों को रखने वाले सामान्यकी विवक्षा करनेपर उसमें कोई विरोध नहीं है।
वह कथंचित् ओज, कथंचित् गुग्म, कथंचित् ओम, कथंचित् विशिष्ट और कथंचित् नोम-नोविशिए है । इस प्रकार अनादि पद के बारह (१२) भंग होते हैं। यह सातवें सूत्रका अर्थ है।
ध्रुव ज्ञानावरणीय वेदना कथंचित् उत्कृष्ट, कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य, व.थंचित् सादि, कथंचित् अनादि, कथंचित् अध्रुव, कथंचित् ओज, कथंचित् गुग्म, कथंचित् ओम, कथंचित् विशिष्ट और कथंचित् नोम-नोविशिष्ट है । इस प्रकार ध्रुव पदके बारह भंग होते हैं । यह आठवें सूत्रका अर्थ है।
____ अध्रुव ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उलष्ट, कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य, कथंचित् सादि, कथावत् ओज, कथंचित् युग्म, करं चत्
ओम, कथंचित् विशिष्ट और कथंचित् नोम-नोविशिष्ट है। इस प्रकार अध्रुव पदके दस (१०) भंग होते हैं । यह नौ सूत्रका अर्थ है।
ओज ज्ञानावरणीयवेदना उत्कृष्प नही होती है, क्योंकि, उत्कृष्ट स्थितिका अवस्थान कृतयुग्म में है। वह कथंचित् नुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य, व कथंचित् सादि है। सामान्यकी विवक्षासे वह कथंचित् अनादि है। वह कथंचित् ध्रुव है । वह कथंचित् अध्रुव है, क्योंकि, विशेषकी विवक्षा है। वह कथंचित ओम,
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