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८२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ६, १. विणाभावित्तादो । सिया सादिया, पदंतरपल्लट्टणेण विणा अजहण्णपदविससाणमवठ्ठाणाभावादो। सिया अणादिया, दवदियणए अवलंदिदे बंधाभावादो। सिया धुवा, व्वट्ठियणए अवलंबिंद अजहण्यापदस्स विणासाभावादो। सिया अधुवा, पज्जवट्ठियणए अवलंबिदे धुवत्ताभावादो । सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्ठा । सुगमं । सिया गोम-गोविसिट्टा, गिरुद्धपदविसेसनादा। एवमजहण्णा एक्कारसभंगा 1२३। एसो पंचमसुत्तत्थो।
सादियणाणावरणीयवेयणा रिया उक्करसा, सिया अणुक्करसा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया अधुवा । धुवा ण हदि, सादियरस उणादिय-धुवत्तविरोहादो। सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिट्टा, सिया णोमणोविसिट्ठा । एवं सादियवेदणाए दसभंगा ! १० । एसो छट्ठसुत्तत्थो ।
अणादियणाणावरणीयवेयणा रिमा उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, सिया अजहण्णा, सिया सादिया । कधमणादियवेयणाए सादियत्तं ? ण, यणासामण्णावेक्खाए अणादियम्मि उक्कस्लादिपदविक्खाए सादियत्त पडि विरोहाभावादो । सिया धुवा,
अविनाभावी है। कथंचित् वह सादि है, क्योंकि, दूसरे पदोंके पलटनेके विना अजघन्य पदविशेष रहते नहीं है । कीचत् वह अनादि है, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करने पर इस पद का बन्ध नहीं होता। कथंचित् वह ध्रुव है, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करने पर अजघन्य पदका विनाश नहीं होता । कथंचित् वह अध्रुव है, क्योंकि, पर्य:यार्थिकः नयका अवलम्बन करनेपर उसके ध्रुवपना नहीं पाया जाता । कथंचित् वह ओज है. कथंचित् युग्म है, कथंचित् ओम है, और कथंचित् वह विशिष्ट है । यह सब सुगम है । कथंचित् वह नोम नोविशिष्ट है, क्योंकि, पदविशेषकी विवक्षा है । इस प्रकार अजघन्य वेदनाके ग्यारह (११) भंग होते हैं । यह पांचवे सूत्रका अर्थ है ।
सादि ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उत्कृष्ट है, कथंचित् अनुत्कृष्ट है, कथंचित् जघन्य है, कथंचित् अजघन्य है, और कनित् अध्रुव है। वह ध्रुव नहीं है, क्योंकि, सादि पदका अनादि और ध्रुव पदके साथ विरोध है। वह कथंचित् ओज है, कथंचित् युग्म है, कथंचित् ओम है, कथंचित् विशिष्ट है, और कथंचित् नोम-नोविशिष्ट है। इस प्रकार सादिवेदनाके दस (१०) भंग होते हैं । यह छठे सूत्रका अर्थ है।
अनादि ज्ञानावरणीयवेदना कथंधित उत्कृष्ट, कथंचित् अनुत्कृष्ट, कथंचित् जघन्य, कथंचित् अजघन्य और कथंचित् सादि है।
शंका-अनादि वेदना सादि कैसे हो सकती है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, वेदनासामान्यकी अपेक्षा उसके अनादि होने पर भी उत्कृष्ट आदि पदोंकी अपेक्षा उसके मादि होने में कोई विरोध नहीं है।
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