Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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वेयणमहाहियारे वैयणखेत्तविहाणे अप्पावर्ग
[ ६९
पंचिंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा संखे
२, ५, ९७ ]
ज्जगुणा ॥ ९४ ॥
को गुणगारो ? संखेज्जा समया ।
संपधि पुत्र परुविदअप्पा बहुगम्मि गुणगारपमाणपत्रण उवरिमसुत्ताणि भणदिहुमादो सुमस्स ओगाहणगुणगाणे आवलियाए असंखेज्जदिभागो ।। ९५ ॥
हुमादो अण्णम्स सहमस्य ओगाहणा असंखेज्जगुणा त्ति जत्थ जत्थ भणिदं तत्थ तत्थ आवलियाए असंखेज्जदिभागो गुणगारो त्ति घेत्तव्वा ।
सुमादो बादरस्स ओगाहणगुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागा ॥ ९६ ॥
सुहुमईदियओगाहणादो जत्थ बादरोगाहणमसंखेज्जगुणमिदि भणिदं तत्थ पलिदो - वमस्स असंखैज्जदिभागो गुणगारो होदि ति घतव्वं । बादरादो मुहुमस्स ओगाहणगुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभाग ॥ ९७ ॥
बाद गाहणादो जत्थ सुहुमईदियओगाहणा असंखेज्जगुणाति भणिदं तत्थ आवलियाए असंखेज्जदिभागो गुणगारो त्ति घेतव्वो ।
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उससे पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है ॥ ९४ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार संख्यात समय है ।
सूत्र कहते हैं
अब पहिले कहे गये अल्पबहुत्व में गुणकारोंके प्रमाणको बतलानेके लिये आगेके
एक सूक्ष्म जीवसे दूसरे सूक्ष्म जीवकी अवगाहनाका गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है ॥ ९५ ॥
एक सूक्ष्म जीवसे दूसरे सूक्ष्म जीवकी अवगाहना असंख्यातगुणी है, ऐसा जहां जहां कहा गया है वहां वहां आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार ग्रहण करना चाहिये ।
सूक्ष्मसे बादर जीवकी अवगाहना का गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है ॥ ९६ ॥ सूक्ष्म एकेन्द्रियकी अवगाहनासे जहां बादर जीवकी अवगाहना असंख्यातगुणी कही है, यहां पयोपमका असंख्यातवां भाग गुणकार होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये ।
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बादरसे सूक्ष्मका अवगाहनागुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है ॥ ९७ ॥
बादरकी अवगाहनासे जहां सूक्ष्म एकेन्द्रियकी अवगाहना असंख्यातगुणी कही है वहां आवलीका असंख्यातवां भाग गुणकार होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये ।
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