________________
.............
वेयणकालविहाणे वेयणकालविहाणे त्ति । तत्थ इमाणि तिणि अणियोगदाराणि णादव्वाणि भवंति ॥ १॥
___एत्थ कालो सत्तविहो- णामकालो ट्ठवणकालो दव्वकालो सामाचारकालो अद्धाकालो पमाणकालो भावकालो चेदि । तत्थ णामकालो णाम कालसद्दो । ठवणकालो सो एसो त्ति बुद्धीए एगत्तं काऊण ठविददव्वं । दव्वकालो दुविहो- आगमदव्वकालो णोआगमदव्वकालो चेदि । कालपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो आगमदव्वकालो । तत्थ णोआगमदव्वकालो तिविहो- जाणुगसरीरणोआगमदव्वकालो भवियणोआगमदव्वकालो जाणुगसरीरभवियतव्वदिरित्तणोआगमदव्वकालो चेदि । जाणुगसरीर-भवियणोआगमदव्वकाला सुगमा। तव्वदिरित्तणोआगमदव्वकालो दुविहो-- पहाणो अप्पहाणो चेदि । तत्थ पहाणदव्वकालो णाम लोगागासपदेसपमाणो सेसपंचदव्वपरिणमणहेदुभूदो रयणरासि व्व पदेसपचयविरहियो अमुत्तो अणाइणिहणो । उत्तं च
( कालो परिणामभयो परिणामे। दव्वकालसंभूदो ।
दोणं एस सहाओ कालो खणभंगुरो णियदो ॥ १॥)
वेदनकालविधान अनुयोगद्वार प्रारम्भ होता है। उसमें ये तीन अनुयोगद्वार जानने योग्य हैं ॥१॥
यहां काल सात प्रकार है- नामकाल, स्थापनाकाल, द्रव्यकाल, सामाचारकाल, अद्धाकाल, प्रमाणकाल और भावकाल । उनमें 'काल' शब्द नामकाल कहा जाता है। वह यह है' इस प्रकार बुद्धिसे भभेद करके स्थापित द्रव्य स्थापनाकाल है। द्रव्यकाल दो प्रकार है-आगमद्रय्यकाल और नोआगमद्रव्यकाल । कालप्राभृतका जानकार उपयोग रहित जीव आगमद्रटयकाल है । नोआगमद्रव्यकाल तीन प्रकार है-शायकशरीर नोआगमद्रव्यकाल, भावी नोमागमद्रव्यकाल और शायकशरीर-भाविव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकाल । इनमें ज्ञायकशरीर और भावी नोआगमद्रव्यकाल ये दोनों सुगम हैं । तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यकाल दो प्रकार है- प्रधान और अप्रधान । उनमें जो प्रदेशों की अपेक्षा लोकके बराबर है, शेष पांच द्रव्योंके परिवर्तनमें कारण है, रत्नराशिके समान प्रदेशप्रचयसे रहित है, अमूर्त व अनादिनिधन है; वह प्रधान द्रव्यकाल है । कहा भी हैसमयादि रूप व्यवहारकाल चूंकि जीव व पुद्गल के परिणमनसे जाना जाता
व पुद्गलका परिणाम चंकि द्रव्यकालके होनेपर होता है, अत एव वह द्रव्यकालसे उत्पन्न कहा जाता है। यह उन दोनों अर्थात् व्यवहार और निश्चय कालका स्वभाव है। इनमें व्यवहारकाल क्षणक्षयी और निश्चयकाल अविनश्वर है ॥ १॥
१ अ-काप्रत्योः 'ठवण', तापतौ ' दुवण ( रयण ) ' इति पाठः । २ पंचा. १००
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org