Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ५, ९९. णिरंतरं वड्दावेदव्वाओ। पुणो जत्थ जिस्से ओगाहणा समप्पदि तक्काले ठविदोगाहणसलागासु रूवमवणेदव्वं, हेढिल्लोगाउणाहि सह हेट्ठा णिरंतरमागंतूग उपरि गमणाभावादो। पुणो जत्थ जत्थ जहण्णागाहणाओ पति तत्थ तत्थ पुवठ्ठविदसलागासु रूवं पक्खिविदव्वं, हेहिल्लागाहणवियप्पसलागासु एदिस्से णत्थि त्ति । सेस जाणिय वत्तवं ।
एदाओ एक्कारस उक्कस्सागाहणाओ उवरिमाओ णिव्वत्तिअपज्जत्ताणमुक्कस्साओ। एदाओ कस्स हवंति ? से काले पज्जत्तो होहदि त्ति द्विदस्स हॉति । लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा किण्ण गहिदी ? ण, लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणाझे णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणाए विसेमाहियभावेण विणा असंखेज्जगुणत्तुवलभादो । हेट्ठिमाओ सुहुमणिगोदाओ णिव्वत्तिपरंपरपज्जत्तीए पज्जत्तयदाणं घेत्तव्वाओ। ताओ कत्थ होति त्ति उत्ते पज्जतयदपढमसमए वट्टमाणस्स जहण्णउववाद-एयंताणुवड्विजोगेहि आगंतूण जहण्णपरिणामजोगे जहण्णोगाहणाए च वट्टमाणस्स एक्कारस वि होति । पुणो णिव्वत्ति
अवगाहनाओंको प्रदेश अधिक क्रम निरन्तर बढ़ाना चाहिये। फिर जहां जिसकी अवगाहना समाप्त होती है उस कालमें स्थापित अवगाहनाशलाकाओं में से एक रूपको कम करना चाहिये, क्योंकि, अधस्तन अवगाहनाओं के साथ नीचे निरन्तर आकर ऊपर गमनका अभाव है। फिर जहां जहां जघन्य अवगाहनाये पड़ती हैं वहां वहां पूर्व स्थापित शलाकाओंमें एक रूपको मिलाना चाहिये, क्योंकि, अधस्तन अवगाहनाके विकल्पमत शलाकाओं में इसकी शलाका नहीं है। शेष जानकर कहना चाहिये।
ये उपरिम ग्यारह उत्कृष्ट अवगाहनाय निवृत्त्य पर्याहकोंकी उत्कृष्ट है। शंका-ये किसके होती हैं ?
समाधान----जो जीव अनन्तर कालमें पर्याप्त होनेवाला है उसके वे अवगाहनायें होती है।
शंका-लब्ध्य पर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाको क्यों नहीं ग्रहण किया ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, लमध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवसाहनासे निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिकताके बिना असंख्यातगुणी पायी जाती है।
सूक्ष्म निगोद से लेकर अधरतन [ ग्यारह जघन्य अवगाद नायें । निर्वृत्ति परम्परा पर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवों की ग्रहण करना चाहिये।
शंका - वे अवगाहनायें कहांपर होती हैं ?
समाधान- इस शंकाके उत्तर में कहते हैं कि जो पर्याप्त होनेके प्रथल समयमें वर्तमान है तथा जघन्य उपपादयोग और जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग से आकर जघन्य परिणामयोग व जघन्य अवगाहनामें रहनेवाला है उसके वे ग्यारह ही अवगाहनायें होती हैं।
१ तापतो 'हेछिल्लोगाहणादि-सह इति पाठः। २ प्रतिषु 'एदिरसे णात्ति'; तापता 'एदिस्से ति' इति पाठः। ३ मप्रतिपाठोऽयम् । प्रतिषु 'हवदि', ताप्रती 'हबदि ( हाति)' इति पाठः । ४ ताप्रती ' लहिदा' इति पाठः। ५ ताप्रतो ‘णिगोदाओ (ण)' इति पाठः । ६ ताप्रती 'बट्टामणस्स' इति पाठः ।
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