Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ५, ५८.] येयणमहाहियारे वैयणखेत्तविहाणे अप्पाबहुगं (११
गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो ।
तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ५५॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तो ।
सुहमआउक्काइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ५६॥
को गुणगारो ? आवलियाए असंखेज्जदिमागो।
तस्सेव णिव्वत्तिअपजत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ५७॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो।
तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ५८ ॥
गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है। उसके ही अपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ५४ ॥ विशेष कितना है ? वह अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उसके ही निवृत्तिपयर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ५५ ॥ विशेष कितना है ? वह आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण है।
उससे सूक्ष्म जलकायिक निवृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है॥५६॥
गुणकार क्या है ? गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है। उसके ही निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ५७॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उसके ही निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ५८॥
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