Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो । तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसे
साहिया ॥ ६९ ॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो । तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ७० ॥
केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो ।
[ ४, २, ५, ६९.
बादरपुढविकाइयणिव्वत्चिपज्जत्तयस्स' जहण्णिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ७१ ॥
को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ।। ७२ ।।
केत्तियमेत्तेण ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेण ।
तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ७३ ॥
गुणकार कितना है ? वह पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । उसके ही निर्वृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ६९ ॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ।
उसके ही निर्वृत्तिपर्य|प्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ७० ॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है ।
उससे बादर पृथिवीकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यात - गुणी है ॥ ७१ ॥
गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है ।
उसके ही निर्वृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ||७२|| कितने मात्र से वह अधिक है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्रसे अधिक है । उसके ही निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है || ७३ ॥
१ प्रतिषु ' णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स ' इति पाठः ।
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