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________________ ६४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो । तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसे साहिया ॥ ६९ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो । तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ७० ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो । [ ४, २, ५, ६९. बादरपुढविकाइयणिव्वत्चिपज्जत्तयस्स' जहण्णिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ७१ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ।। ७२ ।। केत्तियमेत्तेण ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेण । तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ७३ ॥ गुणकार कितना है ? वह पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । उसके ही निर्वृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ६९ ॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । उसके ही निर्वृत्तिपर्य|प्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ७० ॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । उससे बादर पृथिवीकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यात - गुणी है ॥ ७१ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । उसके ही निर्वृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ||७२|| कितने मात्र से वह अधिक है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्रसे अधिक है । उसके ही निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है || ७३ ॥ १ प्रतिषु ' णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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