SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, २, ५, ६८.] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे अप्पाबहुगं ५ केत्तियमेत्तो विसेसो १ अंगुलस्स असंखेज्जदिमागमेत्तो । तस्सेव णिवचिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ६४॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो। बादरतेउक्काइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥६५॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥६६॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेतो।। तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ६७ ॥ केत्तियमत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो। बादरआउक्काइयणिवत्तिपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ६८ ॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उसके ही निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है । ६४॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उससे बादर तेजकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥ ६५॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । उसके ही निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥६६॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उसके ही निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ।। ६७॥ विशेष कितना है । वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उससे बादर जलकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है ॥ ६८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy