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________________ १९) छक्खंडागमै वैयणाखंड केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमत्तो। सुहुमपुढविकाइयणिवत्तिपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ५९॥ को गुणगारो १ आवलियाएं असंखेज्जदिभागो। तस्सेव णिवत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥६० ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो १ अंगुलस्स असंखेज्जदिमागमेत्तो। तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्तिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ६१ ॥ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तो । बादरवाउक्काइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ६२ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सिया ओगाहणा विसेसाहिया ॥ ६३॥ विशेष कितना है? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उससे सूक्ष्म पृथिवीकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥ ५९॥ गुणकार क्या है ? गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है । उसके ही निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥६॥ विशेष कितना है ? वह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण है। उसके ही निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥ ६१॥ विशेष कितना है ? यह अंगुलके असंख्यातवें भाग प्रणाण है। उससे पादर वायुकायिक निवृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥ २॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। उसके ही निर्वृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना उससे विशेष अधिक है ॥६॥ १ प्रतिधु 'पलिदोनमस्स' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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