Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, २, ५, १२. ]
महाहियारे वैणखेत्तविहाणे सामित्तं
[२१
सत्तमपुढविं मोत्तूण हेट्ठा णिगोदेसु सत्तरज्जुमेत्तद्धाणं गंतूण किण्ण उप्पाइदो ? णिगोदेसुप्पज्जमाणस्स अइतिव्ववेयणाभावेण सरीरतिगुणवेयणसमुग्धादस्स अभावादो । जदि एवं तो पुव्विल्लविक्खंभुस्सेहेहिंतो वेयणाए जहा विक्खंभुस्सेहा दुगुणा होंति तहा कादूण गोदे कि उपाइदो ? ण, वडिदक्खेत्तादो परिहीणखेत्तस्स सादिरेयअट्टगुणत्तुवलंभादो । जदि वि वारुणदिसादो एगरज्जुमेतं पुव्वदिसाए गंतूण पुणो हेट्ठा सत्तरज्जुअद्धाणं गंतूण
दक्खिण आहुरज्जुओ गंतूण सुहुमणिगोदेसु उप्पजदि तो वि पुव्विल्लखेत्तादो एदस्स खेत्तं विसेसहीणं चेव, विक्खंभुस्सेहाणं तिगुणत्ताभावादो । सुहुमणिगोदेसु उप्पज्जमाणस्स महामच्छस्स विक्खंभुस्सेहा तिगुणा ण होंति, दुगुणा विसेसाहिया वा होंति त्ति क
वदे ? अधो सत्तमा पुढवीए पेरइएस से काले उप्पज्जिहिदि ति सुत्तादो णव्वदे । संतकम्मपाहुडे पुण णिगोदेसु उप्पाइदो, णेरइएसु उप्पज्जमानमहामच्छो व्व सुहुमणिगोदेसु
शंका- सातवीं पृथिवीको छोड़कर नीचे सात राजु मात्र अध्वान जाकर निगोद जीवों में क्यों नहीं उत्पन्न कराया ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, निगोद जीवोंमें उत्पन्न होनेवाले जीवके अतिशय तीव्र वेदनाका अभाव होनेसे विवक्षित शरीर से तिगुणा वेदनासमुद्घात सम्भव नहीं है ।
शंका - यदि ऐसा है तो वेदनासमुद्घातमें पूर्वोक्त विष्कम्भ और उत्सेधसे जिस प्रकार दुगुणा विष्कम्भ व उत्सेध होता है वैसा करके निगोद जीवोंमें क्यों नहीं उत्पन्न कराया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उसके वृद्धिंगत क्षेत्रकी अपेक्षा हानिको प्राप्त क्षेत्र साधिक आठगुणा पाया जाता है ।
यद्यपि पश्चिम दिशासे एक राजु मात्र पूर्व दिशा में जाकर फिर नीचे सात राजु अध्वान जाकर, फिर दक्षिणसे साढ़े तीन राजु जाकर सूक्ष्म निगोद जीवों में उप्पन्न होता है, तो भी पूर्वके क्षेत्र से इसका क्षेत्र विशेष हीन ही है, क्योंकि, इसमें विष्कम्भ और उत्सेध तिगुणे नहीं हैं ।
शंका - सूक्ष्म निगोद जीवोंमें उत्पन्न होनेवाले महामत्स्थका विष्कम्भ और उत्सेध तिगुणा नहीं होता, किन्तु दुगुणा अथवा विशेष अधिक होता है; यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - " नीचे सातवीं पृथिवीके नारकियों में वह अनन्तर कालमें उत्पन्न होगा " इस सूत्र से जाना जाता है ।
सत्कर्मप्राभृत में उसे निगोद जीवों में उत्पन्न कराया है, क्योंकि, नारकियों में उत्पन्न होनेवाले महामत्स्य के समान सूक्ष्म निगोद जीवों में उत्पन्न होनेवाला महामत्स्य
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