Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ५, २१.] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे सामित्तं धरिदं समखंडं करिय दिण्णे विरलणरूवं पडि वडिपदेसपमाणं पावदि । पुणो एदं उवरिमरूवधरिदेसु दादूण समकरणे कीरमाणे णहरुवाणं पमाणं उच्चदे- रूवाहियटिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लम्भदि तो उवरिमविरलणाए कि लमामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए परिहीणरूवोवलद्धी होदि । पुणो लद्धरूवेसु उवरिमविरलणाए अवणिदेसु तदित्यभागहारो होदि । एत्तो प्पहुडि उवरि संखेज्जभागवड्डी चेव होदूण गच्छदि जाव उवरिमविरलणाए अद्धं चेट्ठदे ति। तत्थ संखेज्जगुणवड्डीए आदी संखेज्जभागवड्डीए परिसमत्ती च जादौ । ___संपधि पुणरवि तदो पहुडि पदेसुत्तर-दुपदेसुत्तरकमेण खेत्तवियप्पेसु वड्डमाणेसु जहण्णखेत्तमेत्तपदेसेसु वड्डिदेसु तिगुणवड्डी होदि। तिरसे ओगाहणाए भागहारो जहण्णोगाहणभागहारस्स तिभागो होदि। तत्तो एग दोपदेसुत्तरादिकमेण जहण्णोगाहणमेत्तपदेसेसु वड्डिदेसु चदुगुणवड्डी होदि । तत्थ भागहारो जहण्णोगाहणाए भागहारस्स चदुभागो होदि । एवं णेदव्वं जाव उक्कस्ससंखेज्जमेत्तो जहण्णोगाहणाए गुणगारो जादो त्ति । तिस्से ओगाहणाए पुण भागहारो जहण्णोगाहणाभागहार उक्कस्ससंखज्जेण खंडिदे तत्थ एगखंडमेत्तो होदि । पुणो
करके उपरिम एक रूपधरित राशिको समखण्ड करके देने पर विरलनरूपके प्रति वृद्धिंगत प्रदेशोंका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर इसको उपरिम रूपधरित राशियोंपर देकर समकरण करते समय नष्ट रूपोंका प्रमाण कहा जाता है - रूपाधिक अधस्तन विर. लन मात्र अध्वान जाकर यदि एक रूपकी हानि पायी जाती है, तो उपरिम विरलनमें वह कितनी पायी जावेगी, इस प्रकार प्रमाणसे फलगणित इच्छाको अपवर्तित करने पर परिहीन रूप प्राप्त होते हैं। पश्चात् प्राप्त रूपोंको उपरिम विरलनमेंसे घटा देनेपर वहांका भागहार होता है। यहांसे लेकर ऊपर संख्यातभागवृद्धि ही होकर जाती है जब तक उपरिम विरलनका अर्ध भाग स्थित रहता है। वहां संख्यातगुणवृद्धिकी आदि और संख्यातभागवृद्धिकी समाप्ति हो जाती है।
___ अब वहांसे लेकर फिर भी एक प्रदेश अधिक दो प्रदेश अधिक क्रमसे क्षेत्रविकल्पोंकी वृद्धि होकर जघन्य क्षेत्र प्रमाण प्रदेशोंके बढ़ जानेपर तिगुणी वृद्धि होती है। उस अवगाहनाका भागहार जघन्य अवगाहना सम्बन्धी भागहारके तृतीय भाग प्रमाण होता है। पश्चात् एक प्रदेश अधिक दो प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे जघन्य अवगाहना मात्र प्रदेशोंकी वृद्धि होनेपर चतुर्गुणी वृद्धि होती है। वही भागहार जघन्य अवगाहना सम्बन्धी भागहारके चतुर्थ भाग प्रमाण होता है। इस प्रकार जघन्य अवगाहना सम्बन्धी गुणकारके उत्कृष्ट संख्यात मात्र हो जाने तक ले जाना चाहिये। उस अवगाहनाका भागहार, जघन्य अवगाहना सम्बन्धी भागहारको उत्कृष्ट संख्यातसे खण्डित करनेपर उसमेंसे एक खण्डके बराबर होता है। पश्चात्
, अप्रतौ ‘विरलणरूवं परि वड्डी' इति पाठः।
२ गो. जी. १०६-७.
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