Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५, २, ५, २१.] वेयणमहाहियारे वेयणखेत्तविहाणे सामित्त सुत्तरादिकमेण तीहि वडीहि वडावेदव्वा जाव बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सियाए ओगाहणाए सरिसी जादा ति । तदो पदेसुत्तरादिकमेण तीहि वड्डीहि इमा ओगाहणा' वडावेदव्वा जाव पंचिंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणाए सरिसी जादा त्ति ।
पुणो अण्णेगेण विक्खंभुस्सेहेहि महामच्छसमाणेण महामच्छायामादो संखेज्जगुणहीणायामेण मुहप्पदेसे वड्विदेगागासपदेसेण लद्धमच्छेण पुविल्लायामेण सह जोयणसहस्सस्स वेयणाए विणा मारणंतियसमुग्घादे कदे महामच्छोगाहणादो एसा ओगाहणा पदेसुत्तरा होदि, मुहम्मि वडिदएगागासपदेसेण अहियत्तुवलंभादो । पुणो एदेणेव लद्धमच्छेण मुहम्मि वड्डिददोआगासपदेसेण जोयणसहस्समारणंतियसमुग्घादे कद पुविल्लक्खेत्तादो [दो-] पदेसुत्तरवियप्पो होदि । एवमेदेण कमेण संखेज्जपदरंगुलमेत्ता आगासपदेसा वडावेदव्वा । एवं वड्डिदूण ट्ठिदखेत्तेण पदेसुत्तरजोयणसहस्सस्स मारणंतियसमुग्घादे कदे लद्धमच्छखेत्तं सरिसं होदि । पुणो पदेसुत्तरादिकमेण मुहम्मि संखेज्जपदरंगुलाणि पुव्वं व वडिय हिदखेत्तेण दुपदेसुत्तरजोयणसहस्सस्स कदमारणंतियसमुग्घादक्खेत्तं सरिसं होदि । एवं एदेण कमेण णेदव्वं जाव आयामो सादिरेयअद्धट्ठमरज्जुमेत्तो जादो त्ति । एदेण खेत्तेण द्वारा बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये । तत्पश्चात् एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे तीन वृद्धियों द्वारा इस अवगाहनाको पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके सदृश हो जाने तक बढ़ाना चाहिये।
फिर विष्कम्भ व उत्सेधकी अपेक्षा महामत्स्यके सदृश व महामत्स्यके आयामसे संख्यातगुणे हीन आयामवाले तथा मुखप्रदेशमें एक आकाशप्रदेशकी वृद्धिको प्राप्त हुए अन्य एक प्राप्त मत्स्यके द्वारा पूर्व आयामके साथ वेदनाके विना एक हजार योजन मारणान्तिकसमुद्घात किये जानेपर महामत्स्यकी अवगाहनासे यह अवगाहना एक प्रदेश अधिक होती है, क्योंकि, वह मुखमें वृद्धिको प्राप्त हुए एक आकाशप्रदेशसे अधिक पायी जाती है। पश्चात् इसी प्राप्त मत्स्यके द्वारा मुखमें दो आकाश प्रदेशोसे वृद्धिंगत होकर एक हजार योजन मारणान्तिक समुद्घात किये जानेपर पूर्वके क्षेत्रकी अपेक्षा [ दो ] प्रदेशों से अधिक विकल्प होता है। इस प्रकार इस क्रमसे संख्यात प्रतरांगुल प्रमाण आकाशप्रदेशोंको बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार बढ़कर स्थित क्षेत्रसे एक प्रदेश अधिक एक हजार योजन मारणान्तिकसमुद्घात करनेपर प्राप्त मत्स्यका क्षेत्र समान होता है। पश्चात् एक प्रदेश अधिक इत्यादि क्रमसे मुखमें पूर्वके समान संख्यात प्रतरांगुल बढ़कर स्थित क्षेत्रसे दो प्रदेश अधिक एक हजार योजन मारणान्तिकसमुद्घात करनेवालेका क्षेत्र समान होता है। इस प्रकार इस क्रमसे आयामके साधिक साढ़े सात राजु प्रमाण हो
१ अ-काप्रत्योः 'इमाओ वड्डीओ ' इति पाठः। २ अ-काप्रत्योः 'अणेगेण ' इति पाठः । . प्रतिधु ' -समुग्पादं कद- ' इति पाठः।
॥हय ।
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