Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ५, ३०० एतो सबजीवेसु ओगाहणमहादंडओ कायव्वो भवदि ॥३०॥ सुगममेदं ।
सव्वत्थोवा सुहुमणिगोदजीवअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा ॥३१॥
एगमुस्सेहघणंगुलं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागेण भागे हिदे एदिस्से जहण्णोगाहणाए पमाणं होदि।
सुहुमवाउक्काइयअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३२॥
एत्थ गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। अपज्जत्ते त्ति उत्ते लद्धिअपज्जतस्स गहणं, णिव्वत्तिअपज्जत्तजहण्णोगाहणाए उवरि परूविज्जमाणत्तादो ।
सुहुमतेउकाइयअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३३॥
गुणगारो आवलियाए असंखेज्जदिभागो। एत्य लद्धिअपज्जत्तयस्सेव गहणं कायव्यं ।
सुहमआउक्काइयअपज्जत्तयस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज्जगुणा ॥ ३४॥
यहांसे आगे सब जीवसमासोंमें यह अवगाहनादण्डक करने योग्य है॥३०॥ यह सूत्र सुगम है। सूक्ष्म निगोद अपर्याप्तक जीवकी जघन्य अवगाहना सबसे स्तोक है ॥ ३१ ॥
एक उत्सेधघनांगुलमें पल्योपमके असंख्यातवें भागका भाग देने पर इस जघन्य अवगाहनाका प्रमाण होता है।
सूक्ष्म वायुकायिक अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना उससे असंख्यातगुणी है ॥३२॥
यहां गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है । ' अपर्याप्त ' कहनेपर उससे लब्ध्यपर्याप्तकका ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि, निवृत्त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना आगे कही जानेवाली है।
उससे सूक्ष्म तेजकायिक अपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥३३॥
गुणकार आवलीका असंख्यातवां भाग है । यहां लब्ध्यपर्याप्तकका ही ग्रहण करना चाहिये।
उससे सूक्ष्म जलकायिक अपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ॥ ३४ ॥ १ अ-काप्मृत्योः ' भणदि ' इति पाठः ।
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