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११. सेफ साइड तक की बाड़ ब्रह्मचर्य पालन करने के लिए इतने कारण तो होने ही चाहिए। एक तो अपना यह ज्ञान होना चाहिए। दूसरा ब्रह्मचारियों का संगबल चाहिए। शहर से दूर आवास होना चाहिए। बाहर का कुसंग नहीं छूना चाहिए। जिसे निरंतर दादा का निदिध्यासन रहे, उसे कुसंग छू ही नहीं सकता।
परम पूज्य दादाश्री खुद के सिद्धांत के लिए क्या कहते हैं, 'हम कोई वंश बढाने थोडे ही आए है? क्या किसी गद्दी की स्थापना करने आए है? हम तो निकाल करने के लिए आए है।' ।
१२. तितिक्षा के तप से गढ़ो, मन और देह _तितिक्षा यानी क्या? जब घास या चारे में सोना पड़े, कंकड़ चुभ रहे हों, उस समय अगर घर याद आए तो वह तितिक्षा नहीं कहलाती। कंकड़ चुभे, तो वह भी अच्छा लगना चाहिए।
रात को दो बजे स्मशान में छोड़ आएँ तो क्या होगा? चिता देखकर? डर बैठ जाएगा? बुखार चढ़ जाएगा?
मोक्षमार्ग में ज़बरदस्त मनोबल की ज़रूरत है। किसी भी प्रकार के विकट संयोगों में भी ऐसा कभी भी नहीं हो कि 'अब मेरा क्या होगा?' स्थिरता से पार निकल जाए।
परम पूज्य दादाश्री कहते हैं कि मैंने अपनी जिंदगी में एक भी उपवास नहीं किया है। पित्त प्रकृति थी, इसलिए उनसे उपवास नहीं हो सकता था। चोविहार, कंदमूल त्याग, उणोदरी (भूख लगे जब भोजन के उपरांत पेट में १ भाग भोजन, १ भाग पानी, १ भाग हवा रहे) तप आदि किया था। उपवास से जागृति बढ़ती है, अंदर जो कचरा जमा हो, वह जल जाता है। वाणी भी कम हो जाती है। ब्रह्मचारियों को हफ्ते में एक दिन उपवास करना चाहिए।
ज्ञानी उणोदरी तप को बहुत महत्व देते हैं। दादाश्री ने हमेशा उणोदरी की थी। उणोदरी यानी पेट को आधा खाली रखना। उससे जागृति
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