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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र गया था । अब क्रमशः प्रत्येक का वर्णन करते हैं। सर्वप्रथम प्राणवध के स्वरूप का वर्णन करते हैं
मूलपाठ पाणवहो नाम एस निच्चं जिणेहि भणिओ-पावो चंडो रुद्दो खुद्दो साहसिओ अणारिओ णिग्घिणो णिस्संसो महब्भओ पइभओ अइभओ वीहणओ तासणओ अणज्जो उव्वेयणओ य णिरवयक्खो णिद्धम्मो णिप्पिवासो णिक्कलुणो णिरयवासगमणनिधणो मोहमहब्भयपयट्टओ मरणविमणस्सो। पढमं अधम्मदारं ॥ सू. १॥
व संस्कृतछाया प्राणवधो नाम एष नित्यं जिनर्भणित :-पापश्चण्डो रुद्रःक्ष द्रः साहसिकोऽनायों निघु णो नृशंसो महाभयः प्रतिभयोऽतिभयो मापनकस्त्रासनकोऽन्यय्या उद्वे जनकश्च निरपेक्षो (निरवकांक्षो) निर्धमों निष्पिपासो निष्करुणो निरयवासगमननिधनो मोहमहाभयप्रवर्तकः (प्रकर्षकः प्रवर्द्धकः) मरणवैमनस्यः। प्रथममधर्मद्वारम् ॥ सू. १॥
पदार्थान्वय—(एस) यह (पाणवहो नाम) प्राणवध नाम (पिच्चं) नित्य (जिणेहिं) जिनेन्द्रों द्वारा (भणिओ) कहा गया है। वह इस प्रकार है-(पावो) पापरूप, (चंडो) चण्ड-अतिकोपजनक, (रुद्दो) रुद्र, (खुद्दो) क्षुद्र, (साहसिओ) साहस से होने वाला अथवा सहसा यानी बिना विचारे होने वाला, (अणारिओ) अनार्य-म्लेच्छ आदि का कार्य (णिग्विणो) घृणारहित, (णिस्संसो) नृशंस-निर्दयतापूर्ण, (महन्भओ) महाभयजनक, (पइभओ) प्रत्येक प्राणी को भयप्रदायक, (अइमओ) अतिभयप्रद, (वोहणओ) भय दिखाने वाला, (तासणओ) त्रास-पीड़ा देने वाला, (अणज्जो) अन्यायकारी, (उज्वेयणओ य) और उद्वग-क्षोभ पैदा करने वाला, (हिरवयक्खो) किसी दूसरे की अपेक्षा नहीं रखने वाला, (णिद्धम्मो) धर्मरहित (णिप्पिवासो) ऐसा कुकृत्य, जिसमें पिपासा शान्त ही न हो,अथवा प्रेम-पिपासा से रहित, (णिक्कलुणो) करुणारहित, (णिरयवासगमणनिधणो) जिसका अन्तिम परिणाम नरकवास करना ही है, (मोहमह
भयपयट्टओ) मोहरूपी महाभय में प्रवृत्त करने वाला अथवा मोह तथा महाभय को बढ़ाने वाला और (मरणविमणस्सो) मरण के समय आत्मा को विमना-खिन्न करने वाला अथवा मरण से आत्मा में दीनता पैदा करने वाला, या मरने वाले जीव के मरण के साथ वैमनस्य पैदा करने वाला यह (पढम) पहला (अधम्मदार) अधर्मद्वारआश्रवद्वार है।
मूलार्थ-जिनेन्द्रदेव ने प्राणवध (हिंसा) का स्वरूप इस प्रकार से