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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
में क्या-क्या बातें, किस-किस रूप मे बताई जाएँगी, इसका निरूपण किया गया है । इस गाथा में वर्णनीय विषय के वर्णन का ढंग बताया गया है, ताकि पाठक को प्रस्तुत विषय आसानी से झटपट हृदयंगम हो सके । तत्त्वार्थसूत्र में किसी भी विषय का स्पष्टरूप से ज्ञान प्राप्त करने के लिए सूत्र बताया गया है-निर्देशस्वामित्व-साधनाधिकरण-स्थिति-विधानतः' अर्थात्-किसी वस्तु के स्पष्ट ज्ञान के लिए उसका नाम व स्वरूप क्या है ? उसका स्वामी या कर्ता कौन है ? उसके लिए साधन कौन-कौन-से हैं ? उसका अधिकरण क्या है ? उसकी स्थिति कितनी है. ? इसी प्रकार यहाँ भी विषय का स्पष्टरूप से परिज्ञान कराने के लिए विषयसूची के रूप में वर्णनीय विषय का संक्षेप में स्पष्ट बोध कराया गया है।
किसी भी विषय का स्पष्ट बोध कराने के लिए निम्नोक्त पांच बातों का वर्णन तो अत्यावश्यक है-(१) प्रतिपाद्य विषय का स्वरूप, (२) उसके नाम, (३) साधन (जिस साधन से वह वस्तु निष्पन्न होती हो, वह साधन पा करण कहलाता है) (४) कर्ता और (५) उसका फल ।
प्रस्तुत गाथा में प्रतिपाद्य विषय है-प्राणवध (हिंसा), अतः इसमें प्राणवध का स्वरूप, इसके विविध नामों, इसके साधनों, इसके कर्ताओं, एवं इसके फलों का वर्णन इस गाथा में सूचित किया गया है। 'जारिसओ' शब्द से प्राणवध का स्वरूप क्या है ? 'जनामा' शब्द से उसके क्या-क्या नाम हैं ? 'जह य कओ' इस पद से उसके साधन कौन-कौन-से हैं ? 'जारिसं फलं देति' इस पर से उसके फल क्या-क्या हैं ? 'जे वि य करेंति पावा' इस पद से उसके कर्ता या स्वामी कौन-कौन हैं ? इस प्रकार कहकर शास्त्रकार ने इस तरीके से वर्णनीय विषय का बोध करा दिया। .
इस तरीके से वर्णनीय विषय के बोध कराने का स्पष्ट प्रयोजन यह है कि जब आत्मा हिंसा के स्वरूप, उसके परिवार, उसके कारणों, उसके कर्ताओं और उसके कटुफलों को जानकर नरक तिर्यञ्चगति के भयंकर दुःखों से बचने के लिए इन सबको छोड़ने का प्रयत्न करेगा, तब निर्द्वन्द्व, निर्भीक और निराकुल होकर सुख-शान्ति और आत्मानन्द का अनुभव करेगा तथा अन्त में मोक्ष पद प्राप्त करेगा।
'पाणवहं तं निसामेह'-इस गाथा में पाणवहं' के बदले 'जीववह क्यों नहीं कहा गया, जिससे स्पष्टतया ज्ञान हो जाता ? इसका समाधान यह है कि जीव अमूर्त और नित्य है । इसे शस्त्र काट नहीं सकते, अग्नि जला नहीं सकती, पानी बहा या गला नहीं सकता, हवा सुखा या उड़ा नहीं सकती, इसलिए जीव का वध असंभव जानकर 'पाणवह' कहा है । क्योंकि प्राणों के अनित्य और नाशवान होने से उनका वध होना संभव है।
प्राणवध शब्द से केवल श्वासोच्छ्वास का घात अर्थ ही नहीं लेना चाहिए, अपितु निम्नोक्त दस ही प्राणों में से किसी भी प्राण के घात का अर्थ लेना चाहिए। दस प्रकार के प्राण ये हैं