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पार्श्वनाथ-चरित्र - मृगको, समुद्र वड़वानलको बुरा होनेपर भी नहीं छोड़ते फिर प्रिय वस्तु के त्यागकी क्या बात है ? सुधाकरमें कलङ्क, पद्मनालमें कण्टक, समुद्र में जलका खारीपन, पण्डितमें निर्धनता, प्रियजनोंमें वियोग, सुरूपमें दुर्भगत्व और धनीमें कृपणत्व आदि प्रत्येक उत्तम वस्तुमें इन दोषोंको उत्पन्न कर विधाता ही रत्नदोषी कहलाये। इसलिये हे कुमार! आप अङ्गीकार किये हुए दानव्रतको मत त्यागें। क्योंकि समुद्र भलेही अपनी मर्यादा छोड़ दें, अचल पर्वत भलेही चलायमान हो जायें ; पर महापुरुष प्राणान्त होनेपर भी अपने स्वीकृत व्रतका त्याग नहीं करते।" ___ याचकोंकी ये बातें सुन ललिताङ्ग कुमार अपने मनमें विचार करने लगे,—“अब मैं क्या करूँ ? यह तो एक ओर कुआँ और दूसरी ओर खाई वाली मसल हुई। एक ओर तो पिताकी आज्ञा है, जो टालने लायक नहीं और दूसरी ओर निन्दाका भय है । यह बहुत ही बुरा है, इसलिये अब चाहे जो हो, मैं तो दान करनेसे मुंह न मोडूंगा।" ___यही सोच कर कुमार फिर पहलेहीको तरह दान करने लगे। यह हाल सुनकर राजा कुमार पर बहुत नाराज हुए। उन्होंने कुमार और उनके नौकरोंको दरबारमें आना बन्द करा दिया। उस अपमानसे मन-ही-मन दुःखी होकर कुमार अपने मनमें सोचने लगे, "मुझे जितना प्रेम दान करनेसे है, उतना राज्य पानेसे नहीं है। जब पिताने मुझे दान करनेके लिये इस तरह अपमानित किया, तब मेरा यहाँ रहना सर्वथा उचित नहीं है । अब मुझे किसी दूसरे