________________
* पार्श्वनाथ-चरित्र *
anamanaran
हैं। इसीके द्वारा उसे अपने स्वार्थों का साधन और हाथी-घोड़े तथा सेनाकी वृद्धि करनी चाहिये। तुम तो आपही बड़े होशियार और चतुर हो, तुम्हें बहुत कहनेका काम ही क्या है ? तुममें दानका जो गुण है, वह बहुत ही उत्तम है, इसमें सन्देह नहीं; पर दानकी भी एक हद होनी चाहिये। बेहद दान देनेकी प्रवृत्ति ठीक नहीं है। कहा भी है, बहुत पाला पड़नेसे पेड़ जल जाते हैं, बहुत पानी बरसनेसे भी अकाल पड़ता है, अधिक खालेनेसे अजीर्ण हो जाता है, बहुत कपूर खानेसे दांत गिरनेका डर रहता है। इसलिये हर काममें अति करना बुरा है। अत्यन्त दान करनेसे हो राजा बली बन्धनमें पड़े, अति गर्वसे रावण मारा गया, अति रूपकेही कारण सीता हरी गयी। इसलिये अति सर्वत्र वर्जित है। तुम धन इकट्ठा करनेकी पूरी चेष्टा करो। जबतक धन रहता है, तभीतक स्त्री-पुत्र आदि अपने बने रहते हैं। धनके बिना बड़े-बड़े गुण बेकार हो जाते हैं। इसलिये तुम योंही धन खर्च न किया करो।" ___ बड़े हर्षसे राजाका यह उपदेशामृत पानकर कुमारने अपने मनमें कहा,—“आह ! मैं धन्य हूँ, जो मेरे पिता स्वयं मेरी इतनी प्रशंसा करते हैं। यह तो सोने और सुगन्धका मेल हो गया। माँ-बाप और गुरुकी शिक्षासे बढ़कर अमृत दूसरा नहीं है।" यही सोच कर कुमारने कहा, "पिताजी ! मुझे आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।" यह कह, पिताको भक्ति-पूर्वक प्रणाम कर कुमार अपने निवास स्थानको चले गये।