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ममि सभाधंव एवं उनका पपपुराण
वोली की महान् कृति है जो कवि के प्रगाघ भाषा ज्ञान की द्योतक है। हिन्दी भाषा में १७वीं शताब्दी में ही खड़ी बोली की परिस्कृत रचना मिलना भाषा साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है । रस एवं अलंकार
पद्मपुराण शुद्ध सात्विक कृति है जिसका पर्यवसान शान्त रस प्रघाम है। इम के प्रमुख पात्र, राम. लक्ष्मण, रावण, हनुमान, विभीषण, सुग्रीव, सीता प्रादि हैं जिनके जीवनवृत्त के घागे पोर पुराण का कथानक घूमता है । प्रारम्भ में कवि ने भगवान मटामीर के पवन मनमकी दिवानि द्वारा निर्गन प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव से लेकर २०वें तीर्थकर मुनिसुवत नाथ के पाबन जीवन का वर्णन किया गया है जो एक भूमिका के रूप में है एवं सम के जन्म के पूर्व में होने बाले महापुरुषों की स्मति मात्र है । इसके अतिरिक्त वानर वंश की उत्पसि, हनुमान का जीवन, उनके पिना पचनंजय एवं अंजना का विवाह, विरह एवं मिलन, राक्षस चंशा, रावण का जन्म, लंका की स्थिति, रावण का पराक्रमी एवं धार्मिक जीवन, रावण द्वारा लंका की प्राप्ति, वैभव, अपार शक्ति एवं विशाल साम्राज्य आदि का चर्णन भी रामकथा के लिये पूर्व पीठिका का कार्य करते हैं । इसलिये पद्मपुराण की रचना समग्र दृष्टि से पूर्ण है उसमें कहीं पर भी न कोई मंशा छुट सका है और न किसी अंश को मनाबश्यक महत्त्व दिया गया है। इसलिए पद्मपुराण में कभी तीर्थंकरों का जन्म होता है, कभी भरत बाहुबलीयुद्ध, माली द्वारा लंका पर आक्रमण,
श्रवन द्वारा युख, इन्द्र और रावण के मध्य युद्ध और अन्त में राम रावण युद्ध होता है जहां वीर रस एवं दूसरे रसों का खुल कर प्रयोग हुप्रा है वहीं दूसरी ओर संसारस्वरूप वर्णन (पृष्ठ ४७), तत्वबर्णन १४३३), राम की तपस्या (५५६६) जसे वर्णन राम्य प्रधान वर्णन हैं जिसमें सात रस का प्रवाह होता है।
पद्मपुराण में गार रस का भी बहुत प्रयोग हुप्रा है । पद्मोत्तर को सुन्दरता, मन्दोदरी का सौंदर्य वर्णन, आदि ऐसे कितने ही स्मल है जिनमें सौंदर्य का मुक्त हस्त से वर्णन हमा है। श्रीकंठ की पुत्री की सुन्दरता का वर्णन देखिए
पर्वत ज्यू पुन्यू चंद, घट बढे यह सदा अनन्त । दीरध नयने श्रवण सो लगे, देख कुरंग वन मांहि भगे ।।५४४१३ दंत चिपके ज्यों होरों की ज्योत, मस्तक कपोल पृथ्वी उद्योत । नासा भौंह बनी छवि घनी, बनी कीतं न जाय गिनी ।। ५५.१४ रावरण की रानी मन्दोदरी की सुन्दरता भी देखियेसे कवि चन्द्रमुली कहै, वह घटै बर्ष या समनित रहै। किम कविराज का है मृग मैन, यई भय दायक सुख की देन ॥७८/२६८॥