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प्रस्तावना
भाषा खडी बोली है जिस पर प्रमुख रूप से राजस्थानी भाषा का प्रभाव दिखाई देता है । कहीं-कहीं उर्दू के शब्द भी आ गये हैं जो उस समय बोलचाल की भाषा में प्रचलित थे ! ती पुरको शुद्ध परिगाजित है । शब्दों को बिगाड करके प्रयोग करने का कवि रवमात्र नहीं है । १७वीं शताब्दी में जेन कवियों ने अपने काव्यों को सही बोली में लिखना प्रारम्भ कर दिया था। प्रस्तुत गमपुराण इस धारणा का स्पष्ट प्रमाण है । उन्होंने प्रान्तीयता अथवा भाषावाद के मोह में न पड़कर सदव प्रदेश में प्रचलित भाषा में काव्य रचना की है।
पुराण की भाषा पर राजस्थानी का पुट है। कहीं-कहीं क्रिया पदों में में राजस्थानी क्रिया दी का प्रयोग किया गया है तो कहीं-कहीं राजस्थानी शब्दों का प्रयोग बहुतायत मे दुपा है। क्रियापद--(1) पहली दुःख प्रजा कून्यू', मधुसूदन का वैर हूं ल्यू
३८४/४३३२ यहाँ घ एवं स्यू विधायें राजस्थानी भाषा का है।
(2) लोग खंदाया उसके पास (१०४६२६] इसमें खंदाया क्रिया पद ठेठ राजस्थानी भाषा का है जिसका अर्थ भेजा होता है। त्रिया पदों की तरह शब्दों का और भी अधिक प्रयोग हुअा है। राजस्थानी शब्दों में से कुछ शब्द निम्न प्रकार है
पारणार (३२,४४६ : प्राग्योणी (४२.९६) जनवासा (५८/६८) बीजणा (२०७:२००४), तिसाया (२२६:२२७४) लेएकु (२०६२२५४१, पाणी (२०६॥ १६६०), भाभी (१६४१८२७), जान (मराम) (१८६९), जिनावर (जानवर १५८ ! १३५०) वाहण (१७११५७८) ।
राजस्थानी फाब्दों के प्रयोग की तरह उर्दू शब्दों का भी पुरा में यत्र-तत्र प्रमोग हुआ है जिसका प्रमुख कारण मभाचन्द मुनि का जन सम्पर्क ही कहा जा सकता है। बवील (२७८३), फरमान (१४५५). दिलगीर (२०७:२०१३), फरमानो गलाम (१९२:१८१४) जैसे शब्दों का प्रयोग प्रस्तुत काम में देखा जा सकता है। कहीं-कहीं उर्दू के शब्दों का मरनीकरणा भी कर दिया है। 'मलाम' शब्द का ह निकालकर मलम (८४:३५४) से काम चला लिया है।
___ इसके अतिरिक्त बजभाषा का भी पुरण पर स्पष्ट प्रभाव है । लोकू, मोकूँ शब्दों के प्रयोग के अतिरिक्त शब्दों के प्रागे 'क' प्रत्यय शब्द जोड़ कर प्रयोग करने की पोर कवि की अधिक कचि रही है। जैसे - समुद्र कू (३६२६) मोकू (३६२८) मानक (३६३०), रामक । ३६१७) शब्दों की पुराण में बहुतायत है ।
लेकिन विभिन्न भाषाओं का प्रभाव होते हुए भी पदमपुराण मुख्यतः खड़ी