Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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श्रमणा परम्परा की दिव्य ज्योति
-श्री जिनेन्द्र मुनि 'काव्यतीर्थ' संसार में सदा काल से त्यागी ज्ञानी गुणियों का सम्मान/अभिनन्दन होता आया है और इसी पावन-परम्परा में आज समाज जिनका अभिनन्दन करने जा रही है वह हैं-वन्दनीय/अभिनन्दनीय वात्सल्य मूर्ति परम विदुषी महासती श्री कुसुमवतीजी म०। आज आपके त्याग तपोमय संयमी जीवन की किरणें सर्वत्र विकीर्ण हो रही हैं।
'समता सर्वभूतेषु' एवं 'भारण्ड पक्खी व चरेपमत्त' के सिद्धान्त को जीवन में साकार रूप देने वाली महासतीजी एक आलोकमयी दिव्य ज्योति हैं जिनके निर्मल ज्ञान-दर्शन-चारित्र के प्रकाश से चतुविध संघ ज्योतित हो रहा है। सेवा समता साधना की त्रिवेणी संगम के कारण आपका संयमो जीवन तीर्थराज प्रयाग की भाँति पवित्र तथा दर्शनीय बना हआ है। जहाँ हजारों हजार भक्त/साधकों को यथार्थ जीवन जीने का मार्गदर्शन प्राप्त होता है । सादा जीवन उच्च विचारों में जीने वाली इस महान साधिका को मैं लगभग अट्ठाईस वर्षों से देख रहा हूँ और उनके विचार और व्यवहार से भलीभाँति परिचित हूँ ।
__ क्रान्तिकारी जैनाचार्य श्री अमरसिंह जी म० को पावन परम्परा की महान साधिका एवं चन्दनबाला श्रमणी संघ की प्रमुखा अध्यात्मयोगिनी महासती श्री सोहनकुवरजी म० की प्रधान शिप्या रत्न हैं महासती श्री कुसुमवती जी म० । आपने अपनी जन्मदात्री के संग लघुवय में संयम ग्रहण कर द्वितीया के चाँद की भाँति विकास करती हुई विनय विवेक द्वारा संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, उर्दू, गुजराती आदि विविध भाषा ज्ञान में निपुणता अर्जित की है । जैनागमों का गहन ज्ञान है अतः प्रवचनों में शास्त्रों की गहन बातें आप सहज सरल भाषा में प्रस्तुत करती हैं जो सबके लिए बोधगम्य
ऋजुमना समताविभूति महासतीजी के जीवन की सहजता/सरलता दर्शनीय एवं अनुकरणीय है। आपके निश्छल/निर्मल व्यवहार से सम्पर्क में आने वाला प्रत्येक इन्सान प्रभावित हुए बिना नहीं रहता । आप जिनशासनोद्यान का एक महकता/खिलता सुरभित कुसुम हैं जिसकी महक से श्रमण संघ को श्रमणी परम्परा महक रही है।
परम विदुषी महासतीजी म० का व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रभावशाली रहा है । आपने जहाँ-जहां भी विचरण किया है एक अनोखी छाप छोड़ी है । ऐसी विलक्षण/विचक्षण प्रतिभामूर्ति साध्वीरत्न वस्तुतः श्रमण संघ की एक महान निधि हैं/धरोहर हैं।
_प्रतिभामूर्ति महासतीजी महाराज की विदुषी शिष्याओं में महासती श्री चारित्रप्रभा जी म. एवं महासती श्री दिव्यप्रभा जी म. साध्वी संघ में अपना गौरवपूर्ण स्थान रखती हैं। विदुषी महासती श्री दिव्यप्रभा जी म. जो पी-एच. डी. हैं, प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ की प्रधान सम्पादिका हैं। वो साधुवाद के योग्य हैं जिन्होंने इस भगीरथ कार्य को हाथ में लेकर सम्पन्नता के शिखर पर पहुँचाया । ग्रन्थ में श्रेष्ठ सामग्री का चयन किया गया है। कुछ लेख प्रसिद्ध साहित्यकार पूज्य गुरुदेव श्री गणेशमुनिजी शास्त्री के सान्निध्य में मुझे भो अवलोकन करने का सुअवसर मिला जिससे स्पष्ट है कि ग्रन्थ अतीव उपयोगी, पठनीय व संग्रहणीय बनेगा, साथ ही जन-जन का मार्ग प्रशस्त करेगा।
समादरणीया महासतीजी म० के दीक्षा अर्धशताब्दी के पुण्य प्रसंग पर हम आपके स्वस्थ दीर्घायु होने की कामना करते हुए शासनेश प्रभु से प्रार्थना करते हैं कि वो दीक्षा शताब्दी भी मनाने का समाज को शुभ अवसर प्रदान करें। इसी हार्दिक मंगलकामना के साथ"":
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
(263 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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