Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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महान साधिका
है, जम्मू-कश्मीर, पंजाब, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरि-श्रीमती भुवनेश्वरी भण्डारी याणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि भारत के अनेक का
प्रान्तों में आपने विचरण कर जिनशासन की प्रभा(अध्यक्षा : अ. भा. श्वे. स्था, जैन कान्फ्रेंस
वना की है। आप की तरह ही आपका शिष्या महिला-संगठन)
परिवार भी विद्वत्ता से परिपूर्ण है। दीक्षा स्वर्ण भारतभूमि में अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया है । उनका जीवन पर कल्याण के लिए होता है ।
जयन्ती के इस पावन अवसर पर मैं हार्दिक वन्दन
अभिनन्दन करता हुआ यही मंगल कामनाएं अर्पित आपश्री का जीवन भी उच्च आदर्श का अनूठा उदा
कर रहा हूँ कि आप स्वस्थ रहें और विगत वर्षों हरण है। जन मानस में नवचेतना एवं नूतन स्फूर्ति
की भांति आगत वर्षों में भी जिनशासन की प्रभाउत्पन्न करने वाली एक महान श्रमणी और श्रेष्ठ
वना करती रहें, हमें मार्गदर्शन प्रदान करते रहें साधिका हैं । आपका संयमी जीवन रत्नत्रय की
जिससे हम भी धर्म व समाज सेवा में अपनी सेवा सम्यक साधना से समृद्ध है, आपने अहिंसा, संयम
देते रहें।
हो व तप की त्रिवेणी गंगा बहाकर जन मानस को उन्नत किया है । प्रभु महावीर की भव्य दिव्य जन कल्याणी सन्तापहारिणी वाणी का ग्रामानुग्राम
तपोमूर्ति विचरण कर प्रचार-प्रसार कर रही हैं। आप तपोनिष्ठ महान साधिका हैं।
-सम्पत्तिलाल बोहरा, उदयपुर १ दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के शुभ अवसर पर आपश्री
(अध्यक्ष : तारक गुरु जैन ग्रन्थालय) का हार्दिक अभिनन्दन एवं भावभीनी शुभकामनायें
परम विदुषी साध्वीरत्न श्री कुसुमवतीजी म. अपित करती हैं। आप निरन्तर अपने पावन लक्ष्य की ओर उन्मुख हों, यही मेरी हार्दिक कामना है।
स्थानकवासी जैन समाज की एक जानी-मानी, पहचानी हुई साधिका हैं। विगत कई वर्षों से मेरा आपसे सम्पर्क रहा है। किसी भी व्यक्तित्व का
निर्माण उसके आचार व विचार से होता है, जिसके शासन प्रभाविका
जीवन में आचार की ऊँचाई व विचारों की पवि-शान्तिलाल तलेसरा, सूरत त्रता होती है वही जीवन आदर्श बनता है । हमारे भाव परम् विदुषी महासतो श्री कुसुमवतीजी स्थान- राष्ट्र की यही धरोहर है । पूज्या महासतीजी को कवासी जैन परम्परा की एक विदुषी माध्वी रत्न जब हम इन दोनों कसौटियों पर कसते हैं तो वे हैं । विगत कई वर्षों से आपकी सेवा व दर्शनों का एक शुद्ध स्वर्ण के रूप में उभर कर हमारे सामने लाभ मुझे बरावर मिलता रहा है, आपके सम्पर्क आती है। में रहकर मैंने पाया है आप में अनेक गुण हैं, जैनधर्म त्यागप्रधान धर्म है। यह भोग से योग विद्वत्ता के साथ नम्रता, ज्ञान के साथ क्रिया, विनय
नय की ओर, राग से विराग की ओर बढ़ने की पवित्र
र के साथ विवेक आदि अनेक विशेषताएं हैं। आपने प्रेरणा प्रदान करता है यही कारण है कि जन सन्त | वाल्यावस्था में संयम अंगीकार कर निरन्तर आगम शनि अपने जीवन को त्याग-तप की सौरभ से न्याय, व्याकरण, दर्शन का गहन अभ्यास किया व महका रहे हैं। विश्व प्रसिद्ध बर्नार्ड शॉ ने कहा अनेक परीक्षाएँ समुत्तीर्ण की हैं।
था-कि मैंने भारतवर्ष में दो अद्भुत वस्तुएँ देखीं । आपका विहार क्षेत्र भी बहुत ही विस्तृत रहा एक महात्मा गाँधी व दूसरी जैन श्रमण व श्रमणियाँ,
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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