Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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ऐसी महान विभूतियों पर हमारे परिवार को सरलता एवं त्याग की प्रतिमूर्ति गौरव है । महासतीजी के सयंमाराधना के ५३ वर्ष
महासती कुसुमवती जी का जीवन-दर्शन सफलतापूर्वक सम्पूर्ण होने की खुशी में हम परिवारिकजन हार्दिक अभिनन्दन करते हैं।
-कन्हैयालाल गौड़, एस. ए. सा. रत्न उनके जीवन का कण-कण शीतल निर्झर की
मेरी भाषा तेरे विचार । तरह प्रवाहित हो रहा है । उसकी शीतल बयार से
मैं तो निमित्तजगत को आनन्द की अनुभूति होती रहे । उनके
त ही दे रही जगत् को धर्मसार ॥ जीवनरूपी वटवक्ष की अनेक शाखायें, प्रशाखायें भगवान् महावीर के विराट् ज्ञानालोक ने पुष्पित पल्लवित हों, खूब फले-फूलें और उन्नति के अध्यात्मवाद को नया स्वर दिया, 'जे एग जाणई शिखर पर पहुँचें, यही हमारी शुभकामना है। से सव्वं जाणइ' एक आत्मा को जानने वाला सब उनकी दीक्षा अर्द्धशती के पावन प्रसंग पर
- कुछ जान लेता है। आया सामाइए-आत्मा ही हमारा पूरा परिवार हार्दिक अभिनन्दन करता है।
___सामायिक-समता का अधिष्ठान है, यही तप है, यही संयम है, यही ज्ञान है।
धर्म और दर्शन का आधार बिन्दु मनुष्य का वंदना-अर्चना
अध्यात्म-जीवन है। जब तक मनुष्य भौतिकवाद -श्री फूलचन्द जैन सर्राफ, कांधला में भटकता रहता है, तब तक उसे सुख, शान्ति महासती श्री कुसुमवतीजी म. सा. चारित्रवान, और सन्तोष प्राप्त नहीं हो सकता। भारतीय ज्ञानवान, दृढ़संयमी ही नहीं बल्कि एक सुलझी हुई संस्कृति का लक्ष्य भोग नहीं, त्याग है, संघर्ष नहीं वक्ता भी हैं। उनकी व्याख्यान शैली ऐसी है शान्ति है, विषमता नहीं समता है; विषाद नहीं जिसका असर कानों तक ही नहीं बल्कि हृदय पर आनन्द है। जीवन की आधारशिला भोग को मान भी होता है। वे अति-मधुरभाषिणी है। लेने पर जीवन का विकास नहीं, विनाश हो जाता
करीबन दस साल पहले सन् ८० में राजस्थान है। जीवन के संरक्षण, सम्वर्द्धन और विकास के से पानीपत आई थी तब कांधला श्री संघ को लिए आध्यात्मिकता का होना नितान्त आवविनती स्वीकार कर कान्धला पधारी थीं। उस श्यक है।
समय मुझे आपके चरणों में बैठने का सौभाग्य साधक की साधना एक सत्य की साधना है । B मिला । मैंने बहुत नजदीक से देखा और परखा कि सत्य के मूल स्वरूप को पकड़ना ही साधक जीवन
आप इतनी दृढ़संयमी और प्रकाण्ड-विद्वान होने के का मुख्य उद्देश्य है । सत्य अनन्त होता है । भारबावजूद बच्चे जैसी सरल हैं । ऐसी सरल महासती तीय संस्कृति में और विशेष रूप से अध्यात्मवादी जी के लिए हमारे दिल में अगाह श्रद्धा है। सरल दर्शन में मानव-जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य मुक्ति आत्माएँ ही निकट अवतारी होती हैं।
प्राप्त करना ही माना गया है। भव बन्धनों से ऐसी महासतीजी म. सा. के पावन चरण- विमुक्त होने के लिए तत्त्वज्ञान की नितान्त आवकमलों में कोटि-कोटि वन्दन करते हुए शासन-देव श्यकता रहती है। जैन-दर्शन में मोक्ष जीवन की Dil से प्रार्थना करता है कि आप दीर्घाय हों और पवित्रता का अन्तिम परिपाक. रस
आपके ज्ञान, ध्यान, संयम, चारित्र, स्वास्थ्य में खूब देह की आसक्ति और वासना के बन्धन को छोड़ना र वृद्धि हो, आप सदा प्रसन्नचित्त रहें । मुझ पर तथा ही मुक्ति है। प्रत्येक आत्मा में परमात्म-ज्योति मेरे परिवार पर सदा की भाँति आपकी कृपा दृष्टि विद्यमान है। प्रत्येक चेतन में परम चेतन विराजरहेगी ऐसी आशा ही नहीं पूरा विश्वास है। मान है ।
प्रथम खण्ड : श्रद्धार्चना
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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