Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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लोग आ गये । वह भाई घबरा उठा । आपकी सेवा
उसकी बाधा दूर हुई .. में भी आया। उस समय भी उसकी घबराहट स्पष्ट दिखाई दे रही थी। महासती जी ने उसे बात उन्हीं दिनों की है जब आप जयपुर में इतना ही कहा कि देव, गुरु और धर्म पर विश्वास विराज रही थीं । जयपुर के बाहर गणगौर स्थानक रखो । वीतराग भगवान् सब ठीक ही करेंगे। वह
में एक बाई काम करती थी। आप तो प्रवचन देने भाई अपने घर आ गया। तत्काल अन्य कुछ
के लिए लाल भवन पधारे हुए थे। स्थानक में व्यवस्था क्या हो सकती है ? इस पर भी विचार थोकड़ों के पारंगत सुश्रावक श्री मोहनलालजी मूथा ॥5 करने लगा। इधर आगत अतिथियों ने भोजन छोटी सतियाँ जी को थोकड़ों का अभ्यास करवा
र करना आरम्भ कर दिया। कछ ऐसा चमत्कार रहे थे। वह बाई पास ही बैठी थी। न मालूम क्या
से हुआ कि सब अतिथियों ने भोजन कर लिया और हुआ कि बैठे-बैठे ही वह बाई जोर-जोर से चिल्लाने फिर भी कुछ भोजन बचा रह गया। वह भाई लगी और दो मंजिल ऊपर से नीचे छलाँग लगाने ? आपकी सेवा में उपस्थित हआ और अपनी प्रस
लगी। उसे बड़ी कठिनाई से पकड़कर नीचे बैठाया। न्नता व्यक्त करते हुए बोला-"महाराज साहब यह
तो वह बेहोश होकर फर्श पर गिर गई जब आप सब आपकी कृपा का ही परिणाम है।"
प्रवचन से वापस पधारी तो आपको सब बात बताई
आपने उस बाई को कुछ सुनाया। थोड़ी ही देर में 0 उस बाई ने आँखें खोली। वह ऐसे उठकर काम में -
लग गई, मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। बाद में भी पुत्रवधू स्वस्थ हो गई
वह बिलकुल स्वस्थ ही रही और सेवा करती सन् १९८५ में अपनी शिष्याओं के अध्ययन हेतु & आप अजमेर से विहार कर जयपुर पधारे। जयपूर
में प्रवेश करके श्री धर्मीचन्दजी जैन के मकान में । ठहरे। उनके घर में पुत्रवधू बहुत बीमार थी।
सुइयाँ चुभना बन्द हो गया र उपचार भी चल रहा था किन्तु कोई विशेष लाभ जयपुर में ही एक बहुत सम्पन्न घर की महिला र नहीं हो रहा था । पुत्रवधू की अस्वस्थता से परिवार थी। वह बहत ही धार्मिक वृत्ति की थी। समय-समय IC
के सभी सदस्य अत्यधिक परेशान थे। पुत्रवधू पर वह व्रत, उपवास, पौषध आदि करती रहती थी। आपकी सेवा में वन्दन करने आई। आपने उसे धार्मिक क्रिया करते समय उसे अक्सर ऐसा दर्द
मांगलिक सुनाया । उस दिन धर्मीचन्दजी की पुत्र- होता था जैसे सारे शरीर में सुइयाँ चुभ रही हों। ॐ वधू ने दिन में तीन बार मांगलिक सुना । दूसरे और किसी ने बोली बन्द कर दी हो । कई बार वह एक
दिन जब पूजनीया गुरुणी म. सा. ने वहाँ से विहार महिला संकेत से महासतीजी को अपने पास बुलाती II किया तो देखा कि जो बह कई दिन से बीमार थी.
-आप उसके समीप जाकर कुछ देर तक उसे कुछ G वह एकदम स्वस्थ है और अपने बच्चे को स्नान सुनाते । इससे उसकी वेदना शान्त हो जाती थी। KE All करवा रही है। इसके पश्चात् वह नियमित रूप से कुछ दिन तक यही क्रम चलता रहा। धीरे-धीरे
|| मांगलिक सुनने आती रही । अभी भी उनका पूरा उसकी यह बीमारी दूर हो गई । उस महिला की । EL परिवार आपके प्रति पूर्ण श्रद्धा रखता है और समय- आप पर अनन्य श्रद्धा है और अभी भी दर्शन लाभ Eph) समय पर दर्शन लाभ लेने आता रहता हैं । लेने आपकी सेवा में आती रहती है।
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द्वितीय खण्ड : जीवन-दर्शन
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