Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur
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| बोधकथा धर्मकथा आदि भी उसके रूप होते हैं। है और लेखक का पूर्ण व्यक्तित्व निखरता है। इन रूपों की सबकी अपनी-अपनी विशेषताएँ होती।
निबन्ध का अर्थ बांधना है--निबन्ध वह है हैं । इनमें से कुछ प्रकार की कहानियों में कहानी ।
जिसमें विशेष रूप से बंध या संगठन हो। जिसमें । कला के समस्त तत्वों की पूर्ति न होते हुए भी वे
विविध प्रकार के विचारों/मतों/व्याख्याओं का अपने आप में पूर्ण हैं ।
सम्मिश्रण हो या गुम्फन हो। वर्तमान युग में ___ बाल ब्रह्मचारिणी महासती श्री कुसुमवती जी निबन्ध उस गद्य रचना को कहा जाता है जिसमें म. सा. को कथा साहित्य का लघुकोश कहा जा परिमित आकार के अन्दर किसी विषय विशेष का सकता है । लघुकथाओं के अतिरिक्त आपने महा- वर्णन अथवा प्रतिपादन अपने निजपन, स्वतन्त्रता पुरुषों के जीवन के प्रेरक प्रसंग भी सुन्दर, सरस सौष्ठव सजीवता आवश्यक संगति और सभ्यता के भाषा-शैली में लिखे हैं। ये जीवन प्रसंग न केवल साथ किया गया हो। स्वाभाविक रूप से अपने रुचिकर हैं वरन् अनुकरणीय भी हैं। ये प्रसंग मर्म- भावों को प्रगट कर देना निबन्धकार की सफलता स्पर्शी हैं जो जीवन को दिशादान देने में समर्थ हैं। होती है ।
कुछ लघुकथाओं आदि का प्रकाशन इस ग्रंथ में भावात्मक और विचारात्मक ये दो प्रकार किया जा रहा है। जिससे पाठक वर्ग आपकी निबन्धों के बताये गये हैं। इनके अतिरिक्त कहींकहानी कला से भी परिचित हो सकें। वैसे महा- कहीं निबन्धों के कुछ अन्य प्रकार भी बताये जाते सती जी प्राचीन श्रु त परम्परानुसार अपना साहित्य हैं, किन्तु इन दोनों के अन्तर्गत सभी समाहित हो प्रकाशित न करवा कर अपनी शिष्याओं को कंठस्थ जाते हैं । करवाती हैं किन्तु प्राचीन युग के समान बौद्धिक भावात्मक निबन्ध में लेखक किसी वस्तु का विशेषताएँ अब हैं नहीं । फिर अब अपने कथ्य को विवेचन अपनी बुद्धि और तर्कशक्ति से नहीं करता, सुरक्षित रखने के अनेक माध्यम उपाय आज विद्य- अपितु हृदय की भावनाओं को सरस अनुभूतियों के मान हैं । इसीलिए महासती जी के समस्त कथा रंग में रंगकर इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि उसे साहित्य का प्रकाशन जन-जन के लाभार्थ होना पढ़ते-पढ़ते प्रबुद्ध पाठकों के हृदयतन्त्री के तार चाहिए।
झनझना उठते हैं। विचारात्मक निबन्धों में आपके कथा साहित्य में जितनी भी लघुकथाएँ,
चिन्तन, विवेचन और तर्क का प्राधान्य होता बोधकथाएँ प्रेरक, प्रसंग आदि हैं वे सभी अनुकर
है। विचारात्मक निबन्धों में निबन्धकार के णीय हैं। उनसे नैतिक शिक्षाएँ ग्रहण की जा सकती व्यक्तिगत दृष्टिकोण से किसी एक वस्तु की तर्कपूर्ण हैं, व्यक्ति के वारित्रक विकास में वे काफी सहायक और चिन्तनशील अनुभूति की गहन अभिव्यक्ति बन सकती हैं । भाषा प्रांजल है और शैली मिश्रित होती है। स्मरणीय है कि सामान्य लेख और है किन्तु उनमें रोचकता है, सरसता है और श्रोताओं निबन्ध में काफी अन्तर है । सामान्य लेख में लेखक को बांधे रखने की क्षमता है।
का व्यक्तित्व प्रच्छन्न रहता है। जबकि निबन्ध में
निबन्धकार का व्यक्तित्व ऊपर उभरकर आता है। . निबन्ध-प्रवचन और कहानी के अलावा आपने 25 अनेक चिन्तनप्रधान निबन्ध भी लिखे हैं । आचार्य बाल ब्रह्मचारिणी परम विदुषी महासती श्री
रामचन्द्र शुक्ल ने निबन्ध को गद्य की कसौटी कहा कुसुमवती जी म. सा. द्वारा लिखित निबन्धों में है । निबन्ध में अनुभूति की अभिव्यक्ति सशक्त होती दोनों ही प्रकार के निबन्ध मिलते हैं । आपके
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सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन
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साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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