Book Title: Kusumvati Sadhvi Abhinandan Granth
Author(s): Divyaprabhashreeji
Publisher: Kusumvati Abhinandan Granth Prakashan Samiti Udaipur

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Page 616
________________ याजित हुए हैं, जिसे । महाभद्रा और न तो इन्द्रियों की सुललिता बार-बार कथा सुनकर भी प्रतिबुद्ध न इतनी प्रबल हो जाती है कि वह जन्म-जन्मान्तरों Air हुई, तब विशेष प्रेरणा के द्वारा उसे बड़ी मुश्किल तक उनसे अपना सम्बन्ध तोड़ नहीं पाता। इससे AII से बोध ही पाता है। प्रतिबुद्ध हो जाने से दोनों जीवात्माओं को जो यातनाएँ सहनी पड़ती हैं, वे ॐ को आत्मबोध हो जाता है । और वे दोनों संसारा- अकल्पनीय ही होती हैं। इसी तरह की जीवा वस्था को छोड़कर आर्हती-दीक्षा ग्रहण कर लेते त्माओं के जन्म-जन्मान्तरों की कथाएँ, हर प्रस्ताव हैं। कालान्तर में, उत्कृष्ट तपश्चरण के प्रभाव में संयोजित हैं। जिनके साथ, छाया की तरह, से मोक्ष प्राप्त करते हैं। कुछ ऐसे जीवन-चरित भी संयोजित हुए हैं, जिन्हें न तो इन्द्रियों की शक्ति अपने अधीन बना पायी ___ इस सार-संक्षेप में आचार्यश्री महाभद्रा और है, न ही हिंसा, चोरी-आदि दुराचारों के वशंवद सुललिता के कथनों से स्पष्ट हो जाता है कि इस . वे बन सके हैं। क्रोध, मान, माया जैसे प्रबल मानमहाकथा में रहस्यात्मकता का गुम्फन कितना सहज वीय-विकारों का प्रभुत्व भी उन्हें पराजित नहीं और दुर्बोध है । इसी तरह के रहस्यात्मक प्रतीक कर पाया। स्पष्ट है कि सिद्धर्षि ने इन कथाओं में कथाचित्रों की भरमार उपमितिभव प्रपञ्चकथा में 'अशुभ' और 'शुभ' परिणामी जीवों के कथानक, है। जो आठों प्रस्तावों में समाविष्ट, अनेकों अलग साथ-साथ संजोये हैं इस महाकथा में । द्विविध अलग कथाओं को पढ़ने पर और अधिक गहरा चरितों की यह संयोजना, सिद्धर्षि की कल्पना से बन जाता है । हिंसा, असत्य, चौर्य/अस्तेय, मैथुन प्रसूत नहीं मानी जा सकती, क्योंकि, इस सबके और अपरिग्रह के साथ क्रोध, मान, माया, लोभ संयोजन में उनका गहन दार्शनिक अभिज्ञान, तथा मोह का आवेग जुड जाने पर स्पर्शन, रसना, चिन्तन और अनुभव, आधारभूत कारक रहा है । घाण, श्रोत्र और चक्षु इन्द्रियों की अधीनता स्वी जिसे उनके रचना-कौशल में देखकर, यह माना कार कर लेने से जो प्रतिकूल परिणाम जीवात्मा जा सकता है कि सिद्धर्षि ने उन शाश्वत स्थितियों को भोगने पड़ते हैं, प्रायः उन समस्त परिणामों से की विवेचना को है, जो जीवात्मा के अस्तित्व के जुड़ी अनेकों कथाएँ, इस महाकथा में अन्तर्भूत हैं। साथ-साथ ही समुदभूत होती हैं। इसी द्विविधता इन कथाओं का घटनाक्रम भिन्न-भिन्न स्थानों पर को, हम इस महाकथा के प्रारम्भ में उन दो ध्रुवभिन्न-भिन्न पारिवारिक-परिवेषों में, भिन्न-भिन्न बिन्दुओं के रूप में देख सकते हैं, जिनसे महाकथा पात्रों के द्वारा घटित/वर्णित किया है सिद्धर्षि ने । का सूत्रपात होता है। इन बिन्दुओं की ओर, इस विभिन्नता को देखकर, सामान्य पाठक को यह सिषि ने 'कर्मपरिणाम' के अधीनस्थ दो सेनानिश्चय कर पाना मुश्किल हो जाता है कि इन पतियों-'पण्योदय' और 'पापोदय'-के कार्यक्षेत्रों अनेको कथा-नायकों में से मुख्यकथा का नायक का निर्धारण करके, इन दोनों की प्रवत्तियों का कौन हो सकता है ? परिचय दे करके, पाठक का ध्यान आकृष्ट करना ___ वस्तुतः स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र चाहा है । इन दोनों की क्रियापद्धति और अधिके माध्यम से संसार को, जीवात्मा न सिर्फ देखता कारों में मात्र यह अन्तर है कि 'पुण्योदय' के है, बल्कि उनसे अपना रागात्मक सम्बन्ध जोड़कर कार्यक्षेत्र में जो जीवात्माएँ आ जाती हैं, उन्हें वह उसकी पुनः-पुनः आवृत्ति करता रहता है । फलतः, उन्नति की ओर अग्रसर करने के लिए प्रयासरत सांसारिक पदार्थों के विकारों की छाप, उस पर रहता है। जबकि, 'पापोदय' अपने अधिकार क्षेत्र UAL १ वही-पीठबन्ध-श्लोक १७-१८ ३ वही-श्लोक ६५८-६६१ २ वही-पृष्ठ ७५२-५३ ५५८ कुसुम अभिनन्दन ग्रन्थ : परिशिष्ट 05 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Opende Jain Education International Ford Private & Personalise. On www.jainelibrary.org

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